लाचित बोरफुकन पर निबंध । Lachit Borphukan Par Nibandh:-लाचित बोरफुकन का नाम भारत के महान क्रांतिकारियों की लिस्ट में शामिल है। लाचित बोरफुकन ने मुगल शासन के खिलाफ बहादुरी के साथ लड़ाई लड़ी थी और असम राज्य से मुगल को बाहर निकालने एवं राज्य के निवासियों को सुरक्षित करने में इनका महत्वपूर्ण योगदान था। लाचित बोरफुकन के द्वारा किए गए सामाजिक कार्यों के कारण पूरे देश भर में वह एक महान नेता के रूप में उभर कर आए है। इन्होंने सराईघाट के युद्ध में मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 24 नवंबर के दिन उनका जन्म दिन है। लाचित दिवस के उपलक्ष्य में निबंध प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जाता है जिसमें लाचित बोरफुकन पर निबंध लिखने के लिए पूछ लिया जाता है। वहीं अगर आप स्कूल में पढ़ते है तो कई बार विद्यार्थी को परीक्षा में लाचित बोरफुकन के विषय में निबंध पूछ लिया जाता है।
अगर लाचित बोरफुकन पर निबंध लिखना चाहते है पर समझ नहीं आ रहा है कि कैसे लिखें? तो हमारा यह लेख आपके बहुत काम आने वाला हैं। इस आर्टिकल के माध्यम से लाचित बोरफुकन पर निबंध कैसे लिखें इसकी जानकारी हम आपको विस्तार पूर्वक प्रदान कर रहे है। इस लेख में आपको कक्षा 1,2,3,4,5,6,7,8,9,10,11,12 से लेकर बड़ी से बड़ी निबंध प्रतियोगिता के लिए निबंध मिल जाएगा। अगर आप लाचित बोरफुकन के बारे में निबंध पढ़ना या लिखना चाहते है तो हमारे इस लेख को आखिर तक जरुर पढ़े।
लाचित बोरफुकन पर निबंध हिंदी में | Essay On Lachit Borphukan in Hindi
आर्टिकल के नाम | लाचित बोरफुकन पर निबंध |
आर्टिकल के प्रकार | निबंध |
साल | 2023 |
योगदान | असम राज्य को मुगल शासन से मुक्त कराया |
प्रसिद्ध हुए | असम को इस्लामी आक्रमण से बचाना (सराईघाट का युद्ध) |
लाचित बोरफुकन पर निबंध (300 शब्द) | Essay On Lachit Borphukan in Hindi
लाचित बोरफुकन का जन्म 24 नवंबर 1622 में असम राज्य में स्थित अहोम साम्राज्य में हुआ था। इनके पिताजी का नाम मोमाई तमुली बोरबरुआ था जो कि ऊपरी-असम के राज्यपाल के पद पर नियुक्त थे। इसके अलावा अहोम सेना के कमांडर इन चीफ भी थे। उनकी माता जी का नाम कुंती मोरन था।इन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा के तौर पर शास्त्र एवं सैन्य शिक्षा प्राप्ति की थी। इन्हें सर्वप्रथम ध्वजवाहक के पद पर अहोम स्वर्गदेव के यहां नियुक्त किया गया था।भारतीय इतिहास में यह एक महान नेता के रूप में जाने जाते हैं। राजा चक्रध्वज ने इनका 1671 में सराईघाट के लड़ाई में मुगल सेना के खिलाफ लड़ने वाली सेना का नेतृत्व करने के लिए चयन किया था।इस युद्ध में मुगल सेना को हार का सामना करना पड़ा था और इस प्रकार पुन: गुवाहाटी को मुगल कब्जे से छुड़ाने में सफल रहे थे। सराय घाटी की लड़ाई में जीत हासिल करने के लगभग 1 वर्ष के बाद बीमारी के कारण उनका निधन हो गया।
सन 1962 में लाचित बोरफुकन के मैदान का निर्माण स्वर्गदेव उदयादित्य सिंघा द्वारा करवाया गया, जहां पर लाचित बोरफुकन के पार्थिव शरीर को स्मृति के तौर पर रखा गया है,जोकि वर्तमान समय में जोरहाट के अंतर्गत आता है। लाचित बोरफुकन की वीरता एवं साहसी कर्तव्य के कारण प्रत्येक वर्ष 24 नवंबर को असम राज्य के निवासी लाचित बोरफुकन दिवस मनाते है।इस दिवस को असम राज्य के निवासी काफी धूमधाम से इनके स्मृति पर श्रद्धांजलि देकर मनाते हैं। असम राज्य के स्कूलों में गीत एवं निबंध प्रतियोगिता के द्वारा इस दिवस को आयोजित किया जाता है।लाचित बोरफुकन भारतीय इतिहास में एक महान नेता के रूप में जाने जाते हैं। इन्होंने अपनी वीरता, साहसी, देश भक्ति एवं अपने कर्तव्य के कारण असम के इतिहास में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिए थे। लाचित बोरफुकन का जीवन की कहानी हम सभी भारतीयों के लिए देश के प्रति कर्तव्य को करने के लिए प्रेरणा प्रदान करती है।
लाचित बोरफुकन पर निबंध (500 शब्द) | Lachit Borphukan Essay 500 Words
प्रस्तावना
लाचित बोरफुकन का जन्म 24 नवंबर को 1622 में चराइडो के अहोम परिवार में हुआ था। इनके पिताजी का नाम मोमाई तमुली बोरबरुआ था जो ऊपरी असम राज्य के राज्यपाल और अहोम सेना चीफ कमांडर थे एवं उनके माता जी का नाम कुंती मोरन था। यह अपने माता-पिता के चौथे पुत्र थे।इन्होंने मानविकी और सैन्य कौशल के शिक्षा को हासिल करने के बाद अहोम स्वर्गदेव राजा के सोलधर बरुआ के पद पर इनको नियुक्त किया गया था। इसके अलावा भी इनको कई पदों पर नियुक्त किया गया था जैसे अहोम राजा चक्रध्वज सिंह की शाही घुड़साल के अधीक्षक , शाही घुड़सवार रक्षक दल के अधीक्षक।
सराईघाट की युद्ध और लाचित बोरफुकन
जब मुगल शासन के सम्राट औरंगजेब ने प्रचलित राजपूत सेनापति राम सिंहा को असम के खिलाफ युद्ध का नेतृत्व करने के लिए चुना गया, तब राम सिंहा ने 1669 में असम के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया। इस युद्ध में राम सिंहा 30000 पैदल सेना, 18000 सैनिकों ,5000 बंदूकची को लेकर असम पहुंचे थे। लेकिन इस युद्ध में इनको, अहोम सेना के मनोबल को तोड़ने में असफलता हाथ लगी।इस युद्ध के अंतिम चरण में जब राम सिंहा की सेना ने सराईघाट के नदी के किनारे से अहोम सेना के ऊपर आक्रमण किया तो अहोम सेना का मनोबल टूट गया और वह इस युद्ध से पीछे हटने लगे और इसी समय लाचित बोरफुकन शारीरिक रूप से काफी बीमार थे। इस स्थिति में वह नाव पर सवार हुए और अपने साथ 7 नाव को लेकर मुगल सेना के तरफ बढे़ और वह अपने सेना यह कहा कि यदि आपको युद्ध के मैदान से भागना है तो भाग जाए लेकिन महाराज ने जो मुझे कार्य दिए हैं उस कार्य को में अच्छी तरह से निर्वाह करूंगा। सिर्फ आप लोग जाकर महाराज को यह सूचित कर दीजिएगा कि उनका सेनाध्यक्ष उनका आदेश का पालन करते युद्ध के मैदान में दुश्मनों के खिलाफ लड़ते रहे। यह बातों को सुनकर अहोम सेना काफी प्रोत्साहित हुए जिसके परिणाम स्वरुप ब्रह्मपुत्र के नदी में एक भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में मुगल के सेना पीछे हट गया है और लाचित बोरफुकन सेना को विजय प्राप्त हुआ। और अंत में राम सिंहा ने 5 अप्रैल 1671 को असम छोड़ कर चले गए।
लाचित दिवस कब मनाया जाता है?
सराईघाट के युद्ध में विजय हासिल करने के खुशी में जश्न के तौर पर प्रत्येक वर्ष 24 नवंबर को लाचित दिवस मनाया जाता है। उनके वीरता, साहसी एवं बहादुरी के कारण स्वर्गदेव उदयादित्य सिंह द्वारा 1672 में लाचित बोरफुकन के मैदान का निर्माण लचित के स्मृति के तौर पर किया गया था, जो वर्तमान समय में जोरहाट के क्षेत्र में स्थित है।
लाचित दिवस कैसे मनाया जाता है?
असम राज्य को मुगल सम्राट से मुक्त एवं सुरक्षित करने के बाद इनके वीरता एवं साहस को याद करने के लिए लाचित दिवस प्रत्येक वर्ष विभिन्न विभिन्न तरह से मनाया जाता है। असम राज्य में स्कूलों के अंदर गीत एवं निबंध प्रतियोगिता का आयोजन करके इस दिवस को मनाया जाता है |
उपसंहार
असम राज्य को मुगल सम्राट से मुक्त एवं सुरक्षित करने में इनका महत्वपूर्ण योगदान था। इनकी वीरता एवं साहस को देखकर असम राज्य में प्रत्येक वर्ष जश्ने के तौर पर लाचित दिवस मनाया जाता है। इस प्रकार यह असम राज्य के इतिहास में एक महत्वपूर्ण नेता के रूप अपनी पहचान बना ली।
All Nibandh List :
लाचित बोरफुकन पर निबंध (750 शब्द) Lachit Borphukan Essay 750 Words
प्रस्तावना
मुगल शासक 17वीं शताब्दी में पूरे भारत पर कब्जा करने के बारे में सोच रहे थे। क्योंकि इन्होंने 16वीं शताब्दी तक बंगाल के धरती पर अपना कब्जा कायम कर लिए थे। अब मुगल का अगला टारगेट हिंदुस्तान के उत्तरी पूर्वी क्षेत्र पर था। हिंदुस्तान के कई योद्धा मुगल के परचम को फैलने से रोका था | जिसमें उत्तरी पूर्वी के एक ऐसे बहादुर योद्धा का जन्म हुआ जो मुगल शासन के औरंगजेब को असम छोड़कर कर भागने के लिए मजबूर कर दिया इस बहादुर योद्धा का नाम लाचित बोरफुकन था।
लाचित बोरफुकन कौन थे?
लचित बोरफुकन असम राज्य के एक महान नेता और अहोम किंडोम आर्मी के कमांडर इन चीफ थे। लाचित बोरफुकन का जन्म 24 नवंबर को 1622 में चराइडो के अहोम परिवार में हुआ था। इनके पिताजी का नाम मोमाई तमुली बोरबरुआ था जो ऊपरी असम राज्य के राज्यपाल और अहोम सेना चीफ कमांडर थे एवं उनके माता जी का नाम कुंती मोरन था । इनकी प्रारंभिक शिक्षा की बात किया जाए तो उनकी शिक्षा इनका पिता के दरबार से हुई। मानविकी और सैन्य कौशल के शिक्षा को ग्रहण करने के बाद अहोम स्वर्गदेव राजा के सोलधर बरुआ के पद पर इनको नियुक्त किया गया था।
लाचित बोरफुकन का युद्ध में प्रवेश कब हुआ?
जयध्वज सिंह की मृत्यु जब 1763 में हो गया तब उनका चचेरा भाई चक्रध्वज सिंह राजा के सिंहासन पर बैठ गए । तब इन्होंने मुस्लिम आक्रमणकारी औरंगज़ेब के कब्जे से पश्चिमी असम को लेने का फैसला किया। इसलिए इन्होंने अपने उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए एक बहादुर एवं वीर, साहसी व्यक्ति की जरूरत थी जो युद्ध का नेतृत्व कर सके। इसके लिए इन्होंने लाचित बोरफुकन के नाम को चुना।
जिस समय पश्चिमी असम मुगल के हाथों में था तब तब राजा चक्रध्वज सिंह को अपमान करने के लिए औरंगजेब ने सम्मान का वस्त्र भेजा और उनके उपस्थित में पहनने के लिए आग्रह किया। तब उन्होंने लाचित के नेतृत्व में एक मजबूत सेना का संगठन का कार्य शुरू कर दिए।
लाचित और मुगल के बीच कई सारे युद्ध हुआ लेकिन इसमें सराईघाट का युद्ध काफी महत्वपूर्ण था। क्योंकि इस युद्ध में मुगल सेना के खिलाफ लड़ने के लिए लाचित को नेतृत्व मिला था और इस युद्ध में लाचित के सेना को विजय प्राप्त हुआ इस प्रकार असम को एक स्वतंत्र रूप प्राप्त हुआ।
अपने मामा का गला काट दिया देश के लिए
लाचित बोरफुकन भली-भांति जानते थे कि मुगल का सेना काफी बड़ी सेना है और इतनी बड़ी सेना का सामना करना बहुत ही कठिन कार्य है इसलिए इन्होंने गुरिल्ला युद्ध की नीति का उपयोग करते हुए गुवाहाटी में कई जगह पर मिट्टी के बांध बनाने का कार्य शुरू कर दिए। लाचित को अच्छी तरह से पता था कि मुगल के सेना काफी कमजोर थे इसलिए इन्होंने मुगल सेना को नदी के रास्ता पार करने के लिए बाध्य कर दिए।
गुवाहाटी के नजदीक अगियाठुटी में जो मिट्टी के बांध का निर्माण का कार्य चल रहा था वह उनके मामा के देखरेख में हो रहा था। इस कार्य को पूरा करने के लिए लाचित ने 24 घंटे का समय दिया था। लेकिन जब लचित इस कार्य को देखने के लिए वहां पर पहुंचे तो देखा कि सैनिक सो रहे थे तब लाचित ने अपने मामा से पूछे, मामा ने जवाब दिया कि सैनिक थक चुके हैं इसलिए वह विश्राम कर रहे हैं। इस वक्त लाचित ने अपने मामा के सर को शरीर से अलग कर दिया और इसी वक्त उन्होंने कहा कि ‘मामा देश से बढ़कर नहीं है’।
सराईघाट का युद्ध
सराईघाट की युद्ध का युद्ध मुगल सेना एवं अहोम सेना के के बीच ब्रह्मपुत्र नदी पर 1671 में हुआ। इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व राम सिंहा ने किया था जबकि अहोम सेना का लाचित ने किया था। इस युद्ध के दौरान लाचित बीमार पड़ गए थे। तब मुगल सेना को इनके अनुपस्थिति में यह विश्वास हो गया कि वह युद्ध जीत जाएंगे। लेकिन लाचित वीर ,साहसी और बहादुर व्यक्ति थे। इसलिए इन्हें गंभीर बीमारी होने के कारण भी देश की सेवा करने से अपने आप को नहीं रोक सके।
सराईघाट की युद्ध में लाचित बीमार पड़ जाने के कारण इनके सेना युद्ध के मैदान से पीछे हटने लगे थे क्योंकि इनका नेतृत्व करने के लिए उनके कप्तान लाचित मौजूद नहीं थे। इस स्थिति को देखकर लाचित काफी चिंतित हो गए इसलिए अपनी सेना को फिर से एकजुट करने के लिए युद्ध के मैदान में है अपने आप को शामिल कर लिए। लाचित अपने साथ 7 नाव को लेकर मुगल सेना के तरफ बढे़ । और इस प्रकार ब्रह्मपुत्र नदी में मुगल सेना और अहोम सेना के बीच काफी भयंकर युद्ध हुआ। और इस युद्ध में अहोम सेना काफी वीरता और साहसी के साथ लड़े जिसके परिणाम स्वरूप इस युद्ध में इनको विजय प्राप्त हुआ। और अंत में मुगल सेना को पीछे हटना पड़ा।
उपसंहार
लाचित बोरफुकन के वीरता एवं साहसी एवं बहादुरी के कारण सराईघाट के युद्ध में मुगल सेवा के खिलाफ नेतृत्व करने का मौका मिला। और उनके अंदर देशभक्ति की भावना होने के कारण बीमार होने के बावजूद भी सराईघाट के युद्ध मुगल सेना के खिलाफ युद्ध लड़े। अर्थात इनके देशभक्ति की भावना को देखकर समाज के प्रत्येक व्यक्ति को इनसे प्रेरणा मिलती है।
लाचित बोरफुकन पर निबंध PDF Download
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लाचित बोरफुकन 10 लाइन | 10 Lines on Lachit Borphukan
- वह अहोम साम्राज्य का एक सेनापति थे।
- उनका जन्म 24 नवंबर 1622 को हुआ था।
- उनके पिता का नाम मोमाई तमुली बोरबरुआ था।
- उनके माता जी का नाम कुंती मोरन था।
- इन्होंने अपने जीवन काल में मुगल के खिलाफ कई सारे युद्ध लड़े थे।
- सराईघाट की युद्ध में मुगल सेना के खिलाफ इन्होंने नेतृत्व किया था।
- सराईघाट की युद्ध में मुगल सेना को पराजित किया था।
- इन्होंने मुगल के कब्जे से गुवाहाटी को वापस छुड़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- उनका मृत्यु बीमारी के कारण 25 अप्रैल 1672 को हो गई थी।
- इनके मृत्यु के उपरांत इनको स्मृति के तौर पर 1672 में लाचित बोरफुकन के मैदान का निर्माण किया गया था।
Summary
उम्मीद करता हूं कि हमारे द्वारा लिखा गया आर्टिकल लाचित बोरफुकन पर निबंध संबंधित जानकारी विस्तार पूर्वक प्रदान की गई है जो आप लोगों को काफी पसंद आया होगा ऐसे में आप लोग हमारे इस आर्टिकल संबंधित कोई प्रश्न एवं सुझाव है तो आप लोग हमारे कमेंट बॉक्स में आकर अपने प्रश्नों को पूछ सकते हैं हम आपके प्रश्नों का जवाब जरूर देंगे।
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FAQ’s: Lachit Borphukan Essay in Hindi
Q. लाचित बोरफुकन का जन्म कब हुआ था?
Ans.लाचित बोरफुकन का जन्म 24 नवंबर 1622 को हुआ था।
Q. सराईघाट का युद्ध कब हुआ था?
Ans.सराईघाट का युद्ध कब 1671 में हुआ था।
Q. सराईघाट का युद्ध में मुगल सेना के खिलाफ नेतृत्व किसने किया था?
Ans.सराईघाट का युद्ध में मुगल सेना के खिलाफ नेतृत्व लाचित बोरफुकन ने किया था।
Q. लाचित बोरफुकन का मृत्यु कब हुआ?
Ans.लाचित बोरफुकन का मृत्यु 25 अप्रैल 1672 को बीमारी के कारण हो गया।