विनायक जी की कहानी  | Vinayak Ji Ki Kahani

हिंदू धर्म में जब भी कोई पूजा या व्रत का अनुष्ठान किया जाता है, तो सबसे पहले विनायक जी अर्थात् गणेश जी की कहानी सुनाई जाती है। श्री गणेश जी को देवताओं में सर्वोच्च स्थान मिला है, इन्हें प्रथम पूज्य देवता भी माना जाता है। इसलिए किसी भी पूजा-पाठ ,व्रत या शुभ कार्य की शुरुआत गणेश जी को याद करके ही की जाती है। इसलिए त्योहार के दिन व्रत कथा सुनने के साथ ही विनायक जी की कहानी भी सुनी जाती है। जिससे व्रत या पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है। आज के इस आर्टिकल में हमने Vinayak Ji Ki Kahani बताई है, यदि आपके घर में कोई व्रत या पूजा का अनुष्ठान होता है तो आप Vinayak Ji Ki Kahani जो नीचे लिखी गई है उसे सुना सकते हैं। 

विनायक जी की कहानी | Vinayak Ji Ki Kahani 

विनायक जी एक दिन राजा के बगीचे से होकर गुजर रहे थे, तभी उनसे गलती से एक फूल टूट जाता है। तब विनायक जी यह सोचते है कि अब मुझे इनके यहाँ काम करना पड़ेगा। जो फूल मुझसे टूट गया हैं, उसका पाप उतारना पड़ेगा । यही इसका प्रायश्चित है। तब विनायक जी भगवान एक छोटे बच्चे का रूप धारण कर लिए और राजा के घर जाकर नौकरी करने लगे। 

एक दिन रानी जी शौच क्रिया से निवृत्त होकर अपना हाथ चूल्हे की राख से धोने लगी। जब विनायक जी ने यह देखा तो राख छिपा दी और रेत से उनका हाथ धुला दिये। तब रानी बहुत गुस्सा हुई और राजा से जाकर बोली राजाजी आप तो, ऐसा नौकर लाये हो जो मुझे हर काम में रोकता है।

जब राजा ने छोटे बच्चे को डांटा तो वह बालक बोला- क्या अशुद्ध हाथ भी कभी चूल्हे की राख से धोया जाता है। राख में   लक्ष्मी जी होती है। राजाजी  बोले बालक तुम्हारी बात तो सही है। फिर एक दिन राजाजी बोले बालक “रानी जी को पुष्कर स्नान करवा लाओ।” दोनों पुष्कर गये तो रानी वहा जाकर लोटा लोटा नहाने लगी,  तभी विनायक जी ने उनका हाथ पकड़कर उनको डुबकी लगवा कर स्नान कराया। तब रानी ने महल आकर राजा से शिकायत की और कहा कि ऐसा नौकर लाये हो जो मुझे पुष्कर में डुबो देता। राजा फिर उसे डाँटने लगे तो विनायक बोला राजाजी पुष्कर जाकर तो डुबकी लगानी चाहिये लोटे लोटे नहाना है, तो घर पर ही बहुत है। तब राजाजी बोले बात तो तुम्हारी सही है।

फिर कुछ दिन बाद राजाजी ने हवन करवाने का सोचे। हवन में बैठने के समय हुआ तब राजा ने विनायक जी को भेजा कि तुम रानी को बुला लाओ। विनायक बुलाने गए तो देखा रानी ने काले नीले वस्त्र पहने हैं। विनायक ने वस्त्र फाड़ दिये। रानी रूठ गई और हवन में नहीं आई। जब राजा स्वयं बुलाने आये तो रानी बोली ये विनायक ने मेरे साथ आज बेहूदा मजाक किया है। राजा ने विनायक को डांटा और कहा क्या बेहुदा मजाक किया तूने। तो विनायक  बोला, क्या राजाजी कभी काले, नीले कपड़े पहन कर कोई हवन में बैठता हैं? लाल साड़ी पहननी चाहिये इसलिए मैंने इनका काला, नीला कपड़ा फाड़ दिया। राजा ने विचार किया, कि बालक छोटा है पर होशियार है। जब हवन में बैठने लगे तो गणेश स्थापना में देर हो गई। राजा ने कहा गणेश‍ जी बैठाओ। तब विनायक  बोला राजा जी अपनी आँखें बन्द करो। इतने में विनायक जी भगवान ने राजा को दर्शन दिये खूब आशीर्वाद दिया। “ऊंद ऊद्याला, दूध दूधाल्या, ओछी पीड्या ऐझनकारा।” और राजा के खूब अन्न-धन लक्ष्मी का भंडार कर दिया। राजा जी बोले विनायक जी महाराज हमने इतने दिन आपसे काम करवाया हमें बहुत दोष  लगेगा। विनायक  जी बोले राजाजी आप चिन्ता मत करो। मैं एक बार आपके बगीचे से गुजर रहा था तो मुझसे एक फूल टूट गया। इसलिये मैंने यह प्रायश्चित किया और वह राजा-रानी को आशीर्वाद दे कर के आगे निकल गये।

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विनायक जी की कहानी | Vinayak Ji Ki Kahani

बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में एक ब्राह्मण और उनकी पत्नी रहती थीं। उनका एक पुत्र था। और वह छोटा सा बच्चा गणेश जी का  बहुत बड़ा भक्त था। वह दिन-रात सिर्फ गणेश जी की सेवा में लगा रहता था, और अपने घर के कामों में कभी भी ध्यान नहीं देता था। इससे ब्राह्मण की पत्नी बहुत चिंतित हो जाती थी। वह अकेले ही घर का पूरा काम करती थी और यह बात उसे बहुत दुखी करती थी।

ब्राह्मण की पत्नी बहुत दिनों तक अपने पति को समझाने की कोशिश करती रही, परंतु उनके पति का मन बदलने का नाम नहीं ले रहा था। घर में रोज़ लडाई झगड़े होते थे, और उनका बेटा उनकी बातों का कभी ध्यान नहीं देता था।

एक दिन, उनका बेटा बहुत दुखी हो गया और उसने तय किया कि अब वह गणेश जी से मिलकर ही वापस आएगा। उसने मन में ठान लिया कि आज वह गणेश जी के पास जाकर ही घर लौटेगा। वह जोर-जोर से “जय गणेश जय गणेश” बोलते बोलते बहुत दूर एक घने जंगल में चला गया।

फिर लड़के को डर भी लगने लगा, लेकिन वह निरंतर “जय गणेश जय गणेश” बोलता रहा। तभी गणेश जी का सिंहासन हिलने लगा और देवी रिद्धि-सिद्धि बोली, “महाराज, आपका प्रिय भक्त आपको बुला रहा है। अब आपको उसकी रक्षा करनी चाहिए।”

फिर गणेश जी अपने सामान्य रूप से एक ब्राह्मण के रूप में लड़के के पास आए और बोले, “लड़के, क्यों रो रहे हो?”

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तब लड़का ने बताया, कि “मुझे गणेश जी से मिलने का बहुत मन था, लेकिन मैं डर गया हूँ।”

तब गणेश जी ने हंसते हुए कहा, “तुम्हारा डर कैसे दूर हो सकता है? मैं यहां हूँ।”

लड़का फिर से डर कर  “जय गणेशजी” बोलना शुरू कर दिया।और गणेश जी का फिर से सिंहासन हिलने लगा और रिद्धि-सिद्धि बोली, “महाराज, यह बच्चा सच्चा भक्त है, आपको उसकी रक्षा करनी चाहिए।”

फिर गणेश जी ब्राह्मण के रूप में लड़के के पास आए और बोले, “लड़के, अपने घर चला जा।”

लड़का बहुत खुश हो गया और अपने घर लौट आया। जब उसने घर की ओर देखा, तो उसे अच्छूत दरबार दिखाई दिया। बाहर घोड़ा खड़ा था, और अंदर दुल्हन बैठी थी। तब लड़के की मां बोली, “भगवान गणेशजी ने हमारे परिवार के प्रति बहुत कृपा की है। आज से हम सब गणेश जी की पूजा किया करेंगे।” सब बहुत खुश हुए और ब्राह्मण का बेटा भगवान गणेश जी की पूजा करने लगा। 

तब गणेश जी खुश होकर उनसे कहे, “तुम मुझसे कुछ भी मांगो, मैं तुम्हें सब कुछ दूंगा।”

लड़के ने सोचा और फिर बोला, “मुझे आपका आशीर्वाद और भक्ति चाहिए, कुछ अधिक नहीं।”

गणेश जी बहुत प्रसन्न हुए और उसको अपना आशीर्वाद दिया। इसके बाद, उनके घर में सुख-शांति बरसने लगी और उनके बेटे का घर धन- धान्य से भर गया।

विनायक जी की कहानी  बुढ़िया माई । Vinayak Ji Ki Kahani Budhiya Mai

एक गाँव में एक बहुत गरीब अंधी बूढ़ी माई थी, उनका एक छोटा सा परिवार था, जिसमे उनका बेटा और बहू थी, बूढ़ी माई की भगवान श्री गणेश में बहुत श्रद्धा थी। वह हमेशा गणेश जी की पूजा करती थी। तभी एक दिन गणेश जी ने कहां की बुढ़िया माई कुछ मांग लो मै तुम्हारी पूजा भक्ति से खुश हूँ। 

तब बुढ़िया माई ने कहा मुझे तो मांगना नहीं आता तब गणेश जी ने कहा: अपने बेटे बहू से पुछ लेना, मै कल फिर आउंगा, तब बुढ़िया माई ने कहा ठीक है अपने बेटे बहू से पूछ कर बताती हूँ।

तब वह घर आकर अपने बेटे बहु से बोली – आज मुझे गणेश भगवान ने स्वयं दर्शन दिए और मुझसे वर मांगने को कहा है, मुझे तो पता नहीं क्या मांगना चाहिए। तो तुम दोनो ही कुछ सोच समझ कर बताओ क्या मांगना चाहिये, वो कल फिर आएंगे।

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बेटे ने कहा कि मां धन दौलत मांग लो और फिर अपनी बहू से पूछा तो वह बोली कि सासु जी हमारी शादी को काफ़ी समय भी हो गया है, और आपको पोता भी चाहिए तो क्यों ना, पोता ही मांग लो।

तो बुढ़िया मांई ने सोचा कि यह दोनों तों अपने मतलब की चीज मांग रहे हैं, तो वह सोचती है कि मैं अपनी प्यारी सहेली से पुछती हूं वह मुझे सही सलाह देगी। फिर बुढ़िया माई सहेली के पास जाकर रहती है कि मुझे विनायक जी ने कहा है कि कुछ भी वर मांग लो।

मैंने अपने बेटे से पूछा, बेटा तो कहता है कि धन मांग लो, और बहू कहती है पोता मांग लो।

तब सहेली बोली कि ना तुम धन मांगो, ना तुम पोता मांगो, तुम अब थोड़े दिन ही तो जियोगी, इसलिए अपने लिए आंखें मांग लो। लेकिन बुढ़िया माई को सहेली की भी बात अच्छी नहीं लगी। 

तब बुढ़िया मांई घर पर जाकर सोचने लगी की ऐसा क्या वरदान लिया जाए की बेटा बहू भी खुश हो जाए और मेरे मतलब की बात भी हो जाए।

अगले दिन गणेश जी आये और बोले कि बुढ़िया मांई आज कुछ मांग लें।

तब वह बोली – आंख दे, जिससे सोने के कटोरे में पोते को दूध पीता देखु, सुहाग दे, निरोग काया दे, 9 करोड़ की माया दे, बेटा पोते, परपोते, दुनिया में भाई भतीजे सारे भरे पूरे परिवार को सुख दे, मुझे मोक्ष दे।

तब गणेश जी हंसकर बोले कि बुढ़िया माई तूने तो मुझे ठग लिया और सब कुछ मांग लिया। और मुस्कुराते हुए बोले – परंतु जैसे तुमने कहा सब वैसे ही होगा और यह कहकर गणेश जी अंतर्ध्यान हो गए। बुढ़िया माई के उसी प्रकार सब कुछ हो गया।

हे गणेश जी! जैसा उस बुढ़िया माई को सब दिया वैसा हम सबको देना।

निष्कर्ष। Conclusion

आज के इस आर्टिकल में हमने Vinayak Ji Ki Kahani बताई, जिसमें हमने Vinayak Ji Ki teen Kahani बताई है, किस प्रकार Vinayak ji अपने भक्तों की मदद् करते है, और उन्हें कभी किसी चीज की कमी नहीं होने देते है।

इस ब्लॉग पोस्ट पर आपका कीमती समय देने के लिए धन्यवाद। इसी प्रकार के बेहतरीन सूचनाप्रद एवं ज्ञानवर्धक लेख easyhindi.in पर पढ़ते रहने के लिए इस वेबसाइट को बुकमार्क कर सकते हैं

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