बछेंद्री पाल की जीवनी। About Bachendri Pal In Hindi

Bachendri Pal

बछेंद्री पाल के बारे में हिंदी में जानकारी। About Bachendri Pal In Hindi

बछेंद्री पाल का जन्म 24 मई, 1954 में वर्तमान उत्तराखंड राज्य के नकुरी गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम किशनपाल और मां का नाम हंसा देवी था। बछेंद्री पांच बच्चों में से एक थीं। बछेंद्री के पिता एक सामान्य व्यापारी थे। Bachendri Pal बचपन से ही पढ़ाई और खेलकूंद में अच्छी थीं। सिर्फ 12 साल की उम्र में वे पिकनिक के दौरान 13 हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंच गई थीं। मौसम खराब होने के बाद वे वहीं रुकी रहीं और इससे उनके दिल में पर्वतों के प्रति प्रेम बढ़ गया। पाल के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उन्होंने जैसे-तैसे मैट्रिक पास की और फिर ग्रेजुएशन किया। वे अपने गांव में पहली ग्रेजुएट थीं। इसके बाद उन्होंने संस्कृत से पोस्ट ग्रेजुएट किया था। जॉब के लिए बी.एड. की ट्रेनिंग प्राप्त की।

Bachendri Pal को पर्वतारोही बनने पर परिवार का काफी विरोध झेलना पड़ा था। इंटेलीजेंट होने के बाद भी उन्हें कोई अच्छा रोजगार नहीं मिला। जब उन्हें जॉब मिली भी तो अस्थायी और कम वेतन की टीचर की जॉब मिली। इससे उन्हें काफी निराशा हुई और जॉब छोड़ दी। इसके बाद उन्होंने ‘नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग’ का कोर्स करने के लिए आवेदन कर दिया। यहीं से बच्छेंद्री की लाइफ को एक नई दिशा मिली। साल 1982 में एडवांस कैम्प के दौरान इन्होंने गंगोत्री और रूदुगैरा की चढ़ाई की थी। इस कैम्प में बछेंद्री को ब्रिगेडियर ज्ञान सिंह ने बतौर इंस्ट्रक्टर की पहली जॉब दी थी। 

पर्वत पर चढ़ने का मिला मौका। first chance at mountaineering

बछेंद्री के लिए पर्वतारोहण का पहला मौका महज 12 साल की उम्र में मिल गया था। एक बार जब वे स्कूल की साथ पूरी टीम के साथ पिकनिक पर गई थीं। साथ पढ़ने वाली सहेलियों के साथ उन्होंने पहली बार 400 मीटर की चढ़ाई की थी। पर्वत की चोटी तक जाते-जाते उन्हें शाम हो गई और जब लौटने का वक्त आया तब तक काफी देर हो गई थी। पूरी प्लानिंग के साथ ना जाने से उनके साथ ऐसा हुआ था। अब पूरी रात उन्हें बिना किसी व्यवस्था के वहीं खुले आकाश के नीचे गुजारनी पड़ी थी। ना ही खाना और ना ही कोई टेंट, लेकिन जज्बा अभी भी सातवे आसमान पर था। 

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अभियान की शुरूआत । launch of campaign

वक्त था साल 1984 का जब चौथा एवरेस्ट अभियान स्टार्ट हुआ था। अभी तक केवल चार महिलाएं ही एवरेस्ट को फतह कर पाईं थीं। एवरेस्ट पर चढ़ना कोई आसान काम भी तो नहीं है। यहां पर ना जाने कितने पर्वतारोही आए और बीच रास्ते से ही वापिस हो गए। कुछ को तो अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ा। चौथे मिशन में जो टीम तैयार की गई, उसमें बछेंद्री सहित सात महिलाएं और 11 पुरुषों को जगह मिली थी। पूरी टीम में काफी जोश के साथ पर्वत की चढ़ाई की और 23 मई 1984 के दिन 1 बजकर 7 मिनट पर 8,848 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ‘सागरमाथा’ पर भारत का झंडा लहराकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया।  एवरेस्ट पर जाने वाली बछेंद्री पाल दुनिया की पांचवी महिला बन गईं। इसके अलावा उन्होंने कई महिलाओं के लिए एवरेस्ट पर जाने के लिए मोटिवेट किया और वे पहली महिला बनीं जिन्होंने एवरेस्ट पर जाकर भारत का नाम रोशन किया। बछेंद्री पाल आज भी कई महिलाओं के लिए एक प्रेरणास्त्रोत हैं। Bachendri Pal वर्तमान में “‘टाटा स्टील” इस्पात कंपनी में काम करती हैं और कुछ चुने हुए लोगों को पर्वत पर जाने के अलावा अन्य रोमांचक अभियानों का प्रशिक्षण देने का काम करती हैं।

समाज सेवा के क्षेत्र में योगदान । Contribution in the field of social service

उत्तराखंड में साल 2013 में आई आपदा के दौरान उन्होंने मौके पर ना सिर्फ लोगों को बचाने का काम किया। बल्कि राहत पहुंचाने में भी काफी भूमिका निभाई। बता दें कि इस आपदा में 4500 से ज्यादा लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। सड़कें पूरी तरह से तबाह हो गई थीं, वहीं गांव के गांव मुख्य धारा से कट गए थे। इस परेशानी के वक्त बछेंद्री पाल ने अपनी टीम के साथ, ट्रेकिंग के अपने हुनर को दिखाया और लोगों की जान बचाई। जानकारी के अनुसार, बछेंद्री पाल ने पहले भी कई राहत और बचाव कार्य में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। गुजरात में आए भूकंप के दौरान साल 2000 में वे करीब डेढ़ माह तक लोगों के लिए काम करती रहीं। 

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मिल चुके कई सम्मान । Received many honors

  • Bachendri Pal को साल 1984 में पर्वतारोहण में उत्कृष्टता के लिए स्वर्ण पदक से नवाजा गया था। 
  • 1984 में केंद्र सरकार ने उन्हें प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 
  • उत्तर प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा उन्हें साल 1985 में स्वर्ण पदक दिया गया।
  • साल 1986 में बछेंद्री पाल के लिए कोलकाता लेडीज स्टडी ग्रप अवार्ड से सम्मानित किया गया।
  • इन्हें साल 1990 में गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी रखा गया।
  • इसके अलावा पाल को 1994 में इंडियन गवर्मेंट ने नेशनल एडवेंचर अवार्ड से नवाजा। 
  • वहीं 1995 में इन्हें उत्कृष्ट कार्य के लिए यश भारती सम्मान भी दिया गया। 
  • साथ ही गढ़वाल द्वारा पी एचडी मानद की उपाधि और मध्यप्रदेश सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने साल 2013-14 में इन्हें वीरांगना लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय सम्मान से पुरुस्कृत किया।

बछेंद्री पाल आज कई महिलाओं और अपने लक्ष्य को पाने से पहले ही हार मान लेने वालों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत हैं। वे कई संस्थानों में अलग-अलग पदों पर अपनी सेवाएं दे चुकी हैं। आज पाल को कई लोग अपना आदर्श मानते हैं। बछेंद्री पाल अपने परिवार के साथ काफी खुश हैं और अच्छा जीवन व्यतीत कर रही हैं। बता दें कि उन्होंने एक पुस्तक भी लिखी है, जो कि उनके द्वारा एवरेस्ट पर्वत फतह के बारे में जानकारी प्रदान करती है। अगर आप पर्वतारोही हैं, तो यह किताब आपके लिए काफी मददगार साबित होगी।

FAQ

Q. बछेंद्री पाल कौन हैं? who is bachendri pal
Ans – बछेंद्री पाल एक पर्वतारोही हैं, जो कि उत्तराखंड में रहती हैं।

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Q. क्या बछेंद्री पाल जीवित हैं? is bachendri pal alive
Ans – हां, बछेंद्री पाल अभी जीवित हैं।

Q. बछेंद्री पाल का जन्म कहां हुआ था? where was bachendri pal born
Ans – बछेंद्री पाल का जन्म 24 मई, 1954 में वर्तमान उत्तराखंड राज्य के नकुरी गांव में हुआ था।

Q. बछेंद्री पाल ने माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई कब की थी? When Did Bachendri Pal Climb Mount Everest
Ans – बछेंद्री पाल ने एवरेस्ट को 23 मई 1984 के दिन 1 बजकर 7 मिनट पर फतह किया।

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