Mother Teresa Biography in Hindi:-कई वर्षों से मनुष्य पृथ्वी पर रह रहा है। लेकिन कुछ ही लोग ऐसे होते हैं जो अपना पूरा जीवन दूसरों के लिए जीते हैं। वे दूसरों के कष्टों को कम करने के लिए जीते हैं। उनके जीवन का उद्देश्य उनके दर्द और दुखों को कम करना और खुशी फैलाना है। Mother Teresa उनमें से एक थी। उन्होंने अपना पूरा जीवन दूसरों के कल्याण के लिए बिताया था। वह गरीब, बीमार और असहाय लोगों का सहारा बन गई। वह हमेशा के लिए Global Icon बन गई।मदर टेरेसा उनका असली नाम नहीं था। उनके बचपन का नाम एग्नेस (Agnes Gonxha Bojaxhiu) था। वह एक ऐसी महिला थी जिनके दिल में प्यार और करुणा भरपूर थी। बचपन से, Agnes का दिल अपार करुणा से भर गया था।
वह कम उम्र से ही बहुत प्यूर और दान- पुण्य के लिए प्रतिबद्ध थी। उन्हें अपनी मां से दान करने की प्रेरणा मिली थी। Agnes और उनकी मां ने जितना संभव हो सका दूसरों की मदद की और वे हमेशा दूसरों के लिए प्रार्थना करते थे। ऐसी ही कई जानकारियों से भरपूर है हमारा ये लेख।इस लेख में हमने मदर टेरेसा का जीवन परिचय, Mother Teresa Biography in Hindi,about mother teresa in hindi, मदर टेरेसा का प्रारम्भिक जीवन,मदर टेरेसा कहा की थी,मदर टेरेसा की शिक्षा, मदर टेरेसा परिवार, मदर टेरेसा के कार्य , मदर टेरेसा की उपलब्धियाँ ,मदर टेरेसा की मृत्यु कब हुई? इन सभी बिंदूओं को मद्देनजर रखते हुए इस लेख को आपके लिए तैयार किया गया है। मदर टेरेसा के बारे में सभी जानकारी को जानने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़े।
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Mother Teresa Biography in Hindi
टॉपिक | मदर टेरेसा का जीवन परिचय |
लेख प्रकार | जीवनी |
साल | 2023 |
मदर टेरेसा जन्म | 29 अगस्त 1910 |
मदर टेरेसा जन्म स्थान | स्कॉप्जे शहर, मेसोडोनिया |
मदर टेरेसा पेशा | रोमन कैथोलिक नन |
मदर टेरेसा मृत्यु | 5 सितंबर 1997 |
कब मिला था नोबल प्राइज | 1979 |
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मदर टेरेसा का जीवन परिचय । Mother Teresa Biography
Mother Teresa Biography:-किसी महान व्यक्ति ने कहा है कि, दुनिया में अपने लिए तो सब जीते हैं, लेकिन जो अपने स्वार्थ को छोड़कर दूसरों के लिए काम करता है, वही महान कहलाता है। ऐसे इंसान का पूरा जीवन प्रेरणादायक होता है जिन्हें, मरने के बाद भी लोग दिल से याद करते हैं। ऐसी ही एक महान हस्ती का नाम है मदर टेरेसा (Mother Teresa)। दया, निस्वार्थ भाव, प्रेम की मूर्ति मदर टेरेसा ने अपना पूरा जीवन दूसरों की सेवा में न्योछावर कर दिया। मदर टेरेसा के अंदर अपार प्रेम था, जो किसी इंसान विशेष के लिए नहीं, बल्कि हर उस इंसान के लिए था, जो गरीब, लाचार, बीमार, जीवन में अकेला था।
Mother Teresa Biography in Hindi- Overview
पूरा नाम | एग्नेस गोंझा बोजाक्सीहू |
जन्म | 29 अगस्त 1910 |
जन्म स्थान | स्कॉप्जे शहर, मेसोडोनिया |
माता | निकोला बोजाक्सीहू |
पिता | ड्रैनफाइल बोजाक्सीहु |
भाई-बहन | 1 भाई, 1 बहन |
धर्म | कैथलिक |
कार्य | मिशनरी ऑफ चैरिटी की स्थापना |
मृत्यु | 5 सितंबर 1997 |
पेशा | रोमन कैथोलिक नन, मानवतावादी |
मदर टेरेसा का प्रारंभिक जीवन । Mother Teresa Life
मदर टेरेसा का जन्म स्कॉप्जे (Skopje), जो कि मेसेडोनिया (Macedonia) में पड़ता है, वहां हुआ था। उनके पिता निकोला बोयाजू एक व्यवसायी थे। मदर टेरेसा का वास्तविक नाम अगनेस गोंझा बोयाजिजू था | अलबेनियन भाषा में गोंझा का अर्थ फूल की कली होता है। जब वह सिर्फ आठ साल की थीं, तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद उनका लालन-पालन उनकी मां ने किया।
18 साल की उम्र में उन्होंने नन बनकर अपने जीवन को एक नई दिशा की तरफ मोड़ दिया था। मदर टेरेसा (Mother Teresa) भारत की नहीं थीं, लेकिन जब वे पहली बार भारत आई तो यहां के लोगों से उन्हें काफी लगाव हुआ और यहां के लोगों से प्रेम कर बैठीं। उन्होंने अपना पूरा जीवन यहीं बिताने का निर्णय लिया और भारत के लिए अभूतपूर्व काम किए। उन्होंने पूरा जीवन दूसरों की सेवा करते हुए व्यतीत किया ।
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मदर टेरेसा कहां की थीं । Where was Mother Teresa From
मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मैसोडोनिया (Macedonia) की राजधानी स्कॉप्जे (Skopje) में हुआ था। इस देश की भाषा “अल्बानिया” है। पहले मैसेडोनिया को यूगोस्लाविया के नाम से जाना जाता था। टेरेसा का वास्तविक नाम “अगनेस गोंझा बोयाजिजू” था। मदर टेरेसा रोमन कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने सन् 1948 में स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता लेकर पूरा जीवन भारतवासियों की सेवा में अर्पण कर दिया |
मदर टेरेसा की शिक्षा | Education of Mother Teresa
Mother Teresa Education:– मदर टेरेसा की स्कूली शिक्षा एक प्राइवेट कैथोलिक स्कूल से अल्बानिया भाषा में पूरी की थी, आगे की शिक्षा सरकारी स्कूल में हुई थी। मदर टेरेसा को म्यूजिक प्ले करना और गाने का बहुत शौंक था। जब वह 18 साल की हुई तो उस उम्र में उन्होंने सिस्टर ऑफ लैराटो में शामिल होने का फैसला किया। फिर वह आयरलैंड गईं और वहां अंग्रेजी सीखी। इसके साथ वे एक कैथोलिक चर्च (Catholic church) से भी जुड़ी थीं। मदर टेरेसा ने कैथोलिक मिशनरियों (Catholic Missionaries) की कहानियों को सुना और मानवता की सेवा में जुट गईं । उन्होंने सेवा के लिए कई यात्राएं की और 1928 में कैथोलिक संस्थान में शामिल होने के बाद आयरलैंड (Ireland) की राजधानी डबलिन (Dublin) में उन्हें करीब 6 महीने ट्रेनिंग दी गई, इसके बाद वे भारत के कोलकाता शहर में आकर पढाने लगीं ।
मदर टेरेसा का परिवार | Mother Teresa Family
मदर टेरेसा पांच भाई बहनों में सबसे छोटी थीं। उनके पिता का नाम निकोला बोजाक्सीहू और मां का नाम ड्रैनाफाइल था। उनके पिता एक व्यवसायी थे, जो काफी धार्मिक इंसान थे। वे हमेशा अपने घर के पास वाले चर्च जाया करते थे और यीशु के अनुयायी थे। 1919 में जब इनके पिता की मौत हुई तब वे सिर्फ आठ साल की थीं। पांच भाई-बहनों में वे सबसे छोटी थी। बचपन में ही उनके एक भाई-बहन की मौत हो गई थी। परिवार में वे अपने एक भाई-बहन और माता-पिता के साथ रह रहीं थीं। मदर टेरेसा को उनकी मां ने बड़ा किया था। पिता के गुजर जाने के बाद उनके परिवार को काफी आर्थिक परेशानियों से गुजरना पड़ा। मां कहती थी कि जो कुछ भी मिले उसे मिल बांट कर खाना चाहिए।
मदर टेरेसा के कार्य | Mother Teresa Work
1929 में मदर टेरेसा अपने इंस्टीट्यूट की बाकि नन (Nun)के साथ मिशनरी के काम से भारत के दार्जलिंग(Darjeeling) शहर आईं। यहां उन्हें मिशनरी स्कूल में पढ़ाने के लिए भेजा गया था। मई 1931 में उन्होंने नन के रूप में प्रतिज्ञा ली थी। इसके बाद उन्हें मिशनरी स्कूल में पढ़ाने के लिए भेजा गया था। इसके बाद उन्हें भारत के कलकत्ता (Kolkata) शहर भेजा गया, यहां उन्हें गरीब बंगाली लड़कियों को शिक्षा देने को कहा गया ।
डबलिन (Dublin) की सिस्टर लोरेटो द्वारा संत मैरी स्कूल की स्थापना की गई, जहां गरीब बच्चे पढ़ते थे। मदर टेरेसा को बंगाली व हिंदी दोनों भाषाओं का अच्छे से ज्ञान था, वे बच्चों को इतिहास व भूगोल पढ़ाया करती थीं। कई सालों तक उन्होंने इस काम को पूरी लगन व निष्ठा से किया। कलकत्ता में रहने के दौरान उन्होंने वहां की गरीबी, लोगों में फैलती बीमारी, लाचारी और अज्ञानता को करीब से देखा। ये सब बातें उनके मन में घर करने लगी और वे कुछ ऐसा करना चाहती थी, जिससे वे लोगों के काम आ सकें और लोगों की तकलीफ को कम कर सकें। 1937 में उन्हें मदर की उपाधि से सम्मानित किया गया। 1944 में वे संत मैरी स्कूल की प्रिंसीपल बन गईं।
10 सितंबर 1946 को मदर टेरेसा को एक नया अनुभव हुआ, जिसके बाद उनकी जिंदगी बदल गई। मदर टेरेसा के मुताबिक – इस दिन वे कलक्ता से दार्जिलिंग कुछ काम के लिए जा रही थीं, तभी यीशु ने उनसे बात की और कहा कि अध्यापन का काम छोड़कर कलकत्ता के गरीब, लाचार, बीमार लोगों की सेवा करो, लेकिन जब मदर टेरेसा ने आज्ञाकारिता का व्रत ले लिया था, तो वे बिना सरकारी अनुमति के कान्वेंट नहीं छोड़ सकती थी।
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Work of Mother Teresa
जनवरी 1948 में उनको परमिशन मिल गई, जिसके बाद उन्होंने स्कूल छोड़ दिया। इसके बाद मदर टेरेसा ने सफेद रंग की नीली धारी वाली साड़ी को अपना लिया और जीवन भर इसी में दिखाई दी । इन्होंने बिहार के पटना से नर्सिंग की ट्रेनिंग ली और वापस कलकत्ता आकर गरीब लोगों की सेवा में जुट गई । मदर टेरेसा ने अनाथ बच्चों के लिए एक आश्रम बनाया, उनकी मदद के लिए बाकि दूसरे चर्च भी हाथ आगे बढ़ाने लगे। इस काम को करते हुए उन्हें कई परेशानियां भी उठानी पड़ी। काम छोड़ने की वजह से उनके कोई आर्थिक मदद नहीं थी, उन्हें अपना पेट भरने के लिए भी लोगों के सामने हाथ फैलाना पड़ता था। वे इन सब बातों से घबराए बिना काम करती रहीं।
मिशनरी ऑफ चैरिटी । Missionary of Charity
7 अक्टूबर 1950 में मदर टेरेसा के ज्यादा कोशिश के चलते उन्हें मिशनरी ऑफ चैरिटी (Missionary of Charity)बनाने की इजाजत मिल गई । इस संस्था में वॉलिन्टियर संत मैरी स्कूल के शिक्षक ही थे, जो सेवा भाव से इस संस्था से जुड़े थे। शुरुआत में इस संस्था में सिर्फ 12 लोग काम करते थे, आज यहां 4000 से ज्यादा नन काम कर रही हैं। इस संस्था के जरिए अनाथालय, नर्सिंग होम, वृध्द आश्रम बनाए गए । मिशनरी ऑफ चैरिटी का मुख्य उद्देश्य उन लोगों की मदद करना था, जिनका दुनिया में कोई नहीं है। उस समय कलकत्ता में ‘प्लेग’ (plague) की बीमारी काफी फैली हुई थी। मदर टेरेसा और उनकी संस्था ऐसे रोगियों की सेवा किया करती थी। वे मरीजों के घाव को हाथ से साफ कर मरहम पट्टी किया करती थी।
कलकत्ता में उस वक्त छुआछूत की बीमारी फैली थी, लाचार गरीबों को समाज से बाहर कर दिया जाता था। मदर टेरेसा ऐसे सभी लोगों के लिए मसीहा बनकर सामने आई और गरीब, भूखे नंगों को सहारा देकर, उन्हें खाना खिलाती थीं। 1965 में मदर टेरेसा ने “रोम” (Rome) के पॉप जॉन पॉल 6 से अपनी मिशनरी को दूसरे देशों में फैलाने की अनुमति मांगी। भारत के बाहर पहला मिशनरी ऑफ चैरिटी का संस्थान ‘वेनेजुएला’ (Venezuela) में शुरू हुआ, जो आज के समय में 100 से ज्यादा देशों में मिशनरी ऑफ चैरिटी संस्था है। मदर टेरेसा के कार्य किसी से छुपे नहीं हैं। उनके निस्वार्थ भाव को स्वतंत्र भारत के सभी बड़े नेताओं ने करीब से देखा था, वे सभी उनकी सराहना करते थे।
मदर टेरेसा की उपलब्धियां | Achievements of Mother Teresa
Year | मदर टेरेसा की उपलब्धियां (Aachievements) |
1962 | भारत सरकार द्वारा “पद्म श्री (Padma Shri)” से सम्मानित किया गया। |
1979 | गरीबों की मदद के लिए “नोबल पुरुस्कार (Nobel Prize)” दिया गया। |
1980 | भारत के सबसे बड़े सम्मान “भारत रत्न(Bharat Ratna)” से सम्मानित किया गया । |
1985 | अमेरिका सरकार द्वारा “मैडल ऑफ फ्रीडम” अवार्ड दिया गया। |
2003 | पॉप जॉन पॉल ने मदर टेरेसा को धन्य कहा, उन्हें ब्लेस्ड टेरेसा ऑफ कलकत्ता कहकर सम्मानित किया। |
• 1962 में भारत सरकार द्वारा “पद्म श्री (Padma Shri)” से सम्मानित किया गया।
• 1979 में गरीबों की मदद के लिए “नोबल पुरुस्कार (Nobel Prize)” दिया गया।
• 1980 में भारत के सबसे बड़े सम्मान “भारत रत्न(Bharat Ratna)” से सम्मानित किया गया ।
• 1985 में अमेरिका सरकार द्वारा “मैडल ऑफ फ्रीडम” अवार्ड दिया गया।
• 2003 में पॉप जॉन पॉल ने मदर टेरेसा को धन्य कहा, उन्हें ब्लेस्ड टेरेसा ऑफ कलकत्ता कहकर सम्मानित किया ।
मदर टेरेसा की मृत्यु । Mother Teresa Death
मदर टेरेसा को कई सालों से दिल और किडनी की बीमारी थी। उन्हें पहला हार्ट अटैक 1983 में रोम में पॉप जॉन पॉल द्वितीय से मुलाकात के दौरान आया, इसके बाद उन्हें दूसरा दिल का दौरा 1989 में आया। 1997 में तबियत ज्यादा बिगड़ने से उन्होंने मिशनरी ऑफ चैरिटी के हेड का पद छोड़ दिया, जिसके बाद सिस्टर मैरी निर्मला जोशी को इस पद के लिए चुना गया । 5 सितंबर 1997 को मदर टेरेसा का कलकत्ता में देहांत हो गया।
मदर टेरेसा के बारे में अनकहें तथ्यें | Mother Teresa Facts
- मदर टेरेसा को कैथोलिक चर्च द्वारा धन्य घोषित किया गया है। यह संत बनने की दिशा में एक कदम है। अब उन्हें कलकत्ता की धन्य टेरेसा कहा जाता है।
- मिशनरी बनने के लिए घर छोड़ने के बाद उसने फिर कभी अपनी माँ या बहन को नहीं देखा।
- अल्बानिया के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का नाम उनके नाम पर रखा गया है, एयरोपोर्टी नेने टेरेज़ा।
- उन्हें 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। पारंपरिक नोबेल सम्मान भोज के बजाय, उन्होंने अनुरोध किया कि भोज का पैसा भारत के गरीबों को दान कर दिया जाए।
- एक बार उन्होंने अग्रिम मोर्चों से 37 बच्चों को बचाने के लिए युद्ध क्षेत्र से यात्रा की।
- उन्हें अपने सभी दान कार्यों के लिए राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन से प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ़ फ़्रीडम सहित कई पुरस्कार प्राप्त हुए।
- मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी का पूर्ण सदस्य बनने के लिए लगभग 9 साल की सेवा की आवश्यकता होती है।
- वह पांच भाषाओं में पारंगत थीं।
- मदर टेरेसा के बारे में एक मजेदार तथ्य यह है कि वह हिंदी, बंगाली, अल्बानियाई, अंग्रेजी और यहां तक कि सर्बियाई भाषा में भी पारंगत थीं। हालाँकि एक भाषा सीखना काफी कठिन है, लेकिन कई भाषाएँ बोलने का एक बड़ा फायदा यह हुआ कि वह दुनिया भर के लोगों के साथ संवाद करने में सक्षम हो गई।
FAQ’s: Mother Teresa Biography in Hindi
Q. मदर टेरेसा कहां से थीं ?
Ans. मेसोडोनिया के स्कॉप्जे शहर से ।
Q. मदर टेरेसा ने किस संस्था की स्थापना की थी ?
Ans. मिशनरी ऑफ चैरिटी संस्था की मदर टेरेसा ने स्थापना की थी.
Q. मदर टेरेसा को नोबल पुरुस्कार कब मिला ?
Ans. 1979 में मदर टेरेसा को नोबल पुरुस्कार मिला.
Q. मदर टेरेसा को ‘भारत रत्न’ पुरुस्कार कब मिला ?
Ans. 1980 में मदर टेरेसा को ‘भारत रत्न’ पुरुस्कार मिला.
Q. जब मदर टेरेसा के पिता की मृत्यु हुई तब उनकी उम्र कितनी थी?
Ans. 1980 में मदर टेरेसा को ‘भारत रत्न’ पुरुस्कार मिला.
Q. मदर टेरेसा जब नन बनी तब उनकी उम्र क्या थी ?
Ans. मदर टेरेसा जब 18 साल की थी तब वह नन बनी थी.
Q. भारत सरकार ने मदर टेरेसा को कौन से साल में पद्म श्री से सम्मानित किया था?
Ans. भारत सरकार ने सन 1962 में मदर टेरेसा को पद्म श्री से सम्मानित किया था।
Q. मदर टेरेसा को नोबल प्राइज कब मिला था?
Ans. सन 1979 में गरीबो की मदद के लिए मदर टेरेसा को नोबल प्राइज से सम्मानित किया गया था।