हेरा पंचमी एक महत्वपूर्ण त्यौहार है, जो वृंदावन में जगन्नाथ रथ-यात्रा उत्सव के पांचवे दिन बड़ी धूम धाम के साथ मनाया जाता है। हेरा शब्द का अर्थ है “देखना” और यह भगवान जगन्नाथ को देखने के लिए जाने वाली भाग्य की देवी को संदर्भित करता है। देवी भगवान के प्रति अपना गुस्सा जाहिर करती हैं। इसी दिन को हेरा पंचमी उत्सव | हेरा पंचमी उत्सव | Hera Panchami Festival in hindi के रूप में मनाया जाता है।
What is Hera Panchami Festival: हेरा पंचमी उत्सव क्या है
जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान पांचवे दिन धूम धाम के साथ मनाये जाने वाले त्योहार को हेरा पंचमी उत्सव | Hera Panchami Festival के नाम से जाना जाता है। इस उत्सव में देवी महालक्ष्मी का सम्मान होता है। और भगवान जगन्नाथ से महालक्ष्मी के वियोग के बारे में बताया जाता है। हेरा (कहीं-कहीं इसको होरा भी कहते हैं) का आशय है ‘देखना’ और पंचमी यानी ‘पांचवा दिन’। ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा शुरू होने के पांचवे दिन देवी लक्ष्मी की यात्रा शुरू होती है। उसी दिन यह उत्सव मनाया जाता हैं।
हेरा पंचमी की कहानी | Story of Hera Panchami Festival
जगन्नाथ रथ यात्रा एक विशाल वार्षिक उत्सव है जो हर साल दस लाख तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है और उस रथ यात्रा के कार्यक्रमों में से एक कर्यक्रम है हेरा पंचमी।
ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ जब अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं, तो उस समय भगवान जगन्नाथ देवी लक्ष्मी से वादा करते हैं, कि वह वहाँ से पांचवे दिन वापस आ जायेंगे। देवी लक्ष्मी उनकी बात मानकर पांचवे दिन प्रतीक्षा करती हैं, लेकिन जब भगवान जगन्नाथ वापस नहीं आते हैं, तब देवी लक्ष्मी स्वयं पालकी पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर की ओर जाने लगती है। फिर वहाँ पहुँचकर भगवान जगन्नाथ से वापस श्री मंदिर लौटने का आग्रह करती हैं। लेकिन उस भगवान जगन्नाथ वापस आने से मना कर देते है। जिसके कारण देवी लक्ष्मी भगवान जगन्नाथ से बहुत ज्यादा गुस्सा हो जाती हैं। उन्हें खुश करने के लिए, भगवान उन्हें आज्ञा माला (सहमति की माला) प्रदान करते हैं। देवी को क्रोधित देखकर सेवक गुंडिचा मन्दिर का मुख्य द्वार बंद कर देते हैं। महालक्ष्मी नकाचना द्वार से मुख्य मंदिर में वापस आती हैं।
फिर देवी अपने एक सेवक को नंदीघोष (भगवान जगन्नाथ के रथ) के एक हिस्से को नुकसान पहुंचाने का आदेश देती हैं। फिर वह गुंडिचा मंदिर के बाहर एक इमली के पेड़ के पीछे छिप जाती है। कुछ समय बाद,अपने किए पर पश्चाताप करते हुए देवी लक्ष्मी गुप्त रूप से हेरा गोहरी लेन नामक एक अलग रास्ते से अपने घर के मंदिर में भाग जाती है। इस अनोखे अनुष्ठान का आनंद भगवान जगन्नाथ के लाखों भक्त उठाते हैं। इसके अंत में भारी मात्रा में प्रसाद भी वितरित किया जाता है।
हेरा पंचमी बहुदा जात्रा (वापसी यात्रा) की शुरुआत का भी प्रतीक माना जाता है, क्योंकि इस प्रक्रिया में रथों को दक्षिण की ओर मोड़ा जाता है, जिसे दखिना मोड़ा कहते हैं।
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When start Hera Panchami festival celebration | हेरा पंचमी उत्सव मनाना कब से शुरू हुआ
हेरा पंचमी उत्सव | Hera Panchami Festival आषाढ़ शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन मनाया जाता है। गुंडिचा में भाग्य की देवी के आगमन के इस उत्सव को हेरा-पंचमी या लक्ष्मी-विजया के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के इतिहास के अनुसार, यह उत्सव महाराजा कपिलेंद्र देव के समय में शुरू हुआ था। उनके शासनकाल से पहले, हेरा पंचमी समारोह मंत्रों के उच्चारण के साथ प्रतीकात्मक रूप से मनाया जाता था। जैसा कि मदाला पंजी में बताया गया है, राजा कपिलेंद्र देब ने इस प्रथा को सोने से बनी महालक्ष्मी की मूर्ति की शुरुआत के साथ बदल दिया और उत्सव को और अधिक यथार्थवादी बना दिया।
उसके बाद प्रसिद्ध राजा प्रतापरुद्र भी श्री चैतन्य महाप्रभु को प्रसन्न करने के लिए इस उत्सव को भव्य तरीके से आयोजित करते थे।
How to Celebrate Hera Panchami : हेरा पंचमी उत्सव कैसे मनाया जाता है
Hera Panchmi उत्सव के दिन श्री मंदिर से देवी लक्ष्मी की प्रतिमा को सबसे पहले परिधानों एवं रंगीन फूलों से अलंकृत किया जाता है। यहां से उन्हें उठाकर गर्भगृह के दक्षिण-पूर्व स्थित बरगद के पेड़ के पास रखी पालकी में बिठाया जाता है। इसके बाद पालकी को सेवकों द्वारा कंधों पर रखकर बाजे-गाजे के साथ जुलूस के रूप में गुंडिचा मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। देवी लक्ष्मी के साथ एक और पालकी चलती है, जिसमें लक्ष्मी जी की खूबसूरत छतरी, पंखा, जल, प्रसाद एवं अन्य आवश्यक वस्तुएं रखी होती हैं। देवी लक्ष्मी की पालकी के पीछे चलने वाले श्रद्धालु जन हेरा पंचमी का रौद्र गीत गाते हैं। ये गीत देवी लक्ष्मी की नाराजगी का प्रतीक माना जाता है। गुंडिचा मंदिर के सामने भगवान जगन्नाथ के रथ के पास देवी लक्ष्मी की पालकी रुकती है। गुंडिचा मंदिर के पुजारी देवी लक्ष्मी की आरती उतारते हैं। संध्या धूप-दीप के पश्चात देवी लक्ष्मी गुंडिचा मंदिर में प्रवेश कर भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा के पास पहुंचती हैं। मंदिर के पुजारी भगवान जगन्नाथ के गले का एक हार देवी लक्ष्मी की प्रतिमा पर रखते हैं। इसके बाद देवी लक्ष्मी मंदिर से बाहर आती हैं। यहां मंदिर के ट्रस्टी देवी को दही चढ़ाकर पूजा करते हैं। देवी लक्ष्मी एक बार पुनः जगन्नाथ के रथ के सामने आती हैं। अनुष्ठान के अंत में परंपरानुसार भगवान जगन्नाथ के रथ का एक हिस्सा तोड़ा जाता है, तब देवी लक्ष्मी क्रोध में आकर श्रीमंदिर वापस लौट जाती हैं।
निष्कर्ष: Conclusion
इस आर्टिकल में हमने आपको Hera Panchami Festival के बारे में बताएंगे, जिसमें हमने आपको बताया कि इन सभी बिंदुओं पर विस्तार से बात किया है। आशा करते हैं कि आपको के बारे में जाने में यह आर्टिकल मददगार साबित हुआ होगा।