मीराबाई को भगवान श्री कृष्ण की अनन्य भक्तों के रूप में जाना जाता है। मीराबाई कृष्ण शाखा की मुख्य कवयित्री और भगवान श्री कृष्ण की अनन्य प्रेमिका थीं। वे कान्हा की सबसे बड़ी साधकों में से एक रहीं। श्री कृष्ण से अधिक प्रेम करने वाली मीरा को पूरा संसार कृष्णमय लगता था। उन्हें हर तरफ भगवान कृष्ण ही दिखते थे और उनका रोम-रोम कृष्णमय हो गया था। यहां पर उनके द्वारा गाए गए कुछ दोहे आपके लिए दिए जा रहे हैं Meerabai Ke Dohe जिससे आप भी कान्हा की भक्ति में डूब सकें।
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।।मन रे परसी हरी के चरण।
सुभाग शीतल कमल कोमल।।त्रिविध ज्वालाहरण
जिन चरण ध्रुव अटल किन्ही रख अपनी शरण
जिन चरण ब्रह्राण भेद्यो नख शिखा सिर धरण
जिन चरण प्रभु परसी लीन्हे करी गौतम करण
जिन चरण गोबर्धन धर्यो गर्व माधव हरण
दासी मीरा लाल गिरीधर आगम तारण तारण
मीरा मगन भाई लिसतें तो मीरा मगन भाईतात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई।
छाड़ि दई कुलकि कानि कहा करिहै कोई।।मै म्हारो सुपनमा पर्नारे दीनानाथ
छप्पन कोटा जाना पधराया दूल्हो श्री बृजनाथ
सुपनमा तोरण बंध्या री सुपनमा गया हाथ
सुपनमा म्हारे परण गया पाया अचल सुहाग
मीरा रो गिरीधर नी प्यारी पूरब जनम रो हाड
मतवारो बादल आयो रे
लिसतें तो मतवारो बादल आयो रे
इन Meerabai Ke Dohe के माध्यम से मीराबाई कहती हैं कि मेरे तो भगवान श्री कृष्ण के अलावा कोई नहीं है। उनके सपने में श्री कृष्ण दूल्हे राजा बनकर पधारे। सपने में तोरण बंधा था जिसे हाथों से तोड़ा दीनानाथ ने। सपने में मीरा ने कृष्ण के पैर छुए और सुहागन बनी।
Meerabai Ke Dohe In Hindi। हिंदी में मीराबाई के दोहे
पायो जी मैने राम रतन धन पायो…
वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरू किरपा करि अपनायो।
जनम जनम की पूंजी पाई जग में सभी खोवायो। पायो जी मैने…
खरचै न खूटै चोर न लूटै दिन दिन बढ़त सवायो। पायो जी मैने…
सत की नाव खेवटिया सतगुरू भवसागर तर आयो। पायो जी मैने…
मीरा की नाव खेवटिया सतगुरू भवसागर तर आयो। पायो जी मैने…
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर हरष हरष जस गायो। पायो जी मैने…ऐरी म्हां दरद दिवाणी
म्हारा दरद न जाण्यौ कोय
घायल री गत घायल जाण्यौ
हिवडो अगण सन्जोय
जौहर की गत जौहरी जाणै
क्या जाण्यौ जण खोय
मीरा री प्रभु पीर मिटांगा
जो वैद सांवरो होय
पद में मीरा बाई ने भगवान श्री कृष्ण के दर्शन की व्याकुलता जगाई है। वे उनके दर्शन के बिना बेचैन हैं और इसमें उन्होंने अपने गिरधर गोपाल से दर्शन देने की प्रार्थना की है।
Meerabai Ke Dohe For Students। स्टुडेंट्स के लिए मीराबाई के दोहे
मनमोहन कान्हा विनती करूं दिन रैन
राह तके मेरे नैन
अब तो दरस देदो कुंज बिहारी
मनवा हैं बैचेन
नेह की डोरी तुम संग जोरी
हमसे तो नहीं जावेगी तोड़ी
हे मुरली धर कृष्ण मुरारी
तनिक ना आवे चैन
राह तके मेरे नैनमाई री! मै तो लियो गोविन्दो मोल
कोई कहे चान, कोई कहे चौड़े
लियो री बजता ढोल।।
कोई कहै मुन्हंगो, कोई कहे सुहंगो, लियो री तराजू रे तोल
कोई कहे कारो, कोई कहे गोरो, लियो री आख्या खोल
याही कुं सब जग जानत हैं, रियो री अमोलक मोल
मीरां कुं प्रभु दरसन दीज्यो, पूरब जन्म का कोलनैना निपट बंकट छबि अटके
देखत रूप मदनमोहन को, पियत पियूख न मटके।
बारिज भवां अलक टेढ़ी मनौ, अति सुगंध रस अटके।।
टेढ़ी कटि, टेढी कर मुरली, टेढ़ी पाग लट लटके।
मीरा प्रभु के रूप लुभानी, गिरिधर नागर नट के।।राणाजी, म्हे तो गोविन्द के गुण गास्यां।
चरणामृत को नेम हमारे, नितउठ दरसण जास्यां।।
हरि मंदर में निरत करास्यां, घूंघरिया धमकास्यां।
राम नाम का झाझ चलास्यां भवसागर तर जास्यां।।
यह संसार बाड़ का कांटा ज्या संगत नहीं जास्यां।
मीरा कहै प्रभु गिरधर नागर निरक परख गुण गास्यां।।
Meerabai Ke Dohe Class 10। दसवीं कक्षा के लिए मीराबाई के दोहे
गली तो चारों बंद हुई हैं, मैं हरिसे मिलूं कैसे जाय।
ऊंची नीची राह रपटली, पांव नहीं ठहराय।।
सोच सोच पग धरूं जतन से, बार-बार डिग जाय।
ऊंचा-नीचां महल पिया का म्हांसूं चढ्यो न जाय।।
पिया दूर पथ म्हारो झीणो, सुरत झकोला खाय।
कोस-कोस पर पहरा बैठया, पैग पैग बटमार।।
हे बिधना कैसी रच दीनी दूर बसायो लाय।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर सतगुरू दई बताय।
जुगन-जुगन से बिछड़ी मीरा घर में लीनी लाय।।मीरा के तुम बिछुरे प्रभु मोरे कबहूं न पायों चैन।
सबद सुनत मेरी छतियां कांपे मीठे-मीठे बैन।।
बरह कथा कांसूं कहूं सजनी, बह गईं करवत ऐन।
कल परत पल हरि मग जोंवत भई छमासी रेण।
मीरां के प्रभु कबरे मिलोगे, दुख मेटण सुख देण।हरि तुम हरो जन की भीर।
द्रोपदी की लाज राखी, तुम बढ़ायो चीर।
भक्त कारण रूप नरहरि, धरयो आप शरीर
हिरणकश्यपु मार दीहों, धरयो नाहिंन धीर।
बूडते गजराज राखे,कियो बाहर नीर।
दासि मीरा लाल गिरिधर, दुख जहां तहं पीर।।
मीराबाई भगवान श्री कृष्ण से स्वयं के कष्टों को दूर करने के लिए उनसे कहती हैं, कि हे प्रभु आप सभी के कष्टों को दूर करते हैं। जिस प्रकार आपन दया दिखाते हुए द्रोपदी के सम्मान की रक्षा की और उसके लिए चमत्कार से चीर प्रकट करते गए। उसी तरह मुझ दासी पर भी कृपा करके हे गिरिधर मेरे दुखों का निवारण करिए।
Meerabai Ke Dohe। मीराबाई के दोहे
पग घूंघरू बांध मीरा नाची रे।
मै तो मेरे नारायण की आपहि हो गई दासी रे।
लोग कहै मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी रे।
विष का प्याला राणाजी भेज्या पीवत मीरा हांसी रे।
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर सहज मिले अविनासी रे।बरसै बदरिया सावन की सावन की मन भावन की।
सावन में उमग्यो मेरो मनवा भनक सुनी हरि आवन की।।
उमड घुमड चहुं दिससे आयो, दामण दमके झर लावन की।
नान्हीं नान्हीं बूंदन मेहा बरसै, सीतल पवन सोहावन की।।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर, आनन्द मंगल गावन की।बसो मोरे नैनन में नंदलाल
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल, अरुण तिलक दिये भाल
मोहनी मुरति सांवरी सूरति, नैना बने बिसाल
अधर सुधारस मुरली राजति, उर बैजंती माल
छुद्र घंटिका कटि तट शोभित, नूपुर सबद रसाल
मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भक्त बछल गोपाल