Gyanvapi Temple Case: 3 दशक से चल रहे ज्ञानवापी मंदिर केस में अब तक क्या क्या हुआ? जानें पूरी जानकारी

Gyanvapi Temple Case Timeline

Gyanvapi Temple Case: ज्ञानवापी मंदिर केस आजकल मीडिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। हाल के दिनों में मुस्लिम पक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) में पांच याचिकाएं दाखिल कि थी उन सभी पांच याचिकाओं को कोर्ट ने खारिज कर दिया है। मुस्लिम पक्ष ने अपने याचिका में टाइटल सूट (Title Suit) को चुनौती दी थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की सिंगल बेंच के द्वारा याचिका संबंधित फैसला सुनाया गया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट में दायर पांच याचिकाओं में से तीन वाराणसी कोर्ट (Varanasi Court) में 1991 में दायर किए गए केस की पोषणीयता से जुड़ी हुई थी। वहीं, दो अन्य याचिका एएसआई (ASI Survey) सर्वेक्षण के खिलाफ दायर की गई थी। अब इन पांचों याचिकाओं को खारिज कर दिया गया है।

काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple)

दरअसल Muslim Party के द्वारा कोर्ट में 1991 प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 का हवाला दिया गया था। जिसके मुताबिक ज्ञानवापी परिसर में कोई भी कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती है। तब कोर्ट ने कहा कि ज्ञानवापी के मामले में इस प्रकार के नियम लागू नहीं होते हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद काफी पुराना है। ऐसा कहा जाता है कि 1659 में मुगल शासक औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) को तोड़कर यहां पर ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Masjid) का निर्माण किया था। काशी विश्वनाथ मंदिर की स्थापना राजा टोडरमल और नारायण दत्त के द्वारा की गई थी।

हिंदू पक्ष के दावे के मुताबिक 1670 से इसे लेकर लड़ाई लड़ रहे है । जबकि दूसरी तरफ मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यहां पर मंदिर नहीं था। बल्कि शुरुआती दिनों से ही यहां पर मस्जिद बनी हुई है। ज्ञानवापी मंदिर केस (Gyanvapi Mandir Case) 1991 में बनारस कोर्ट (Banaras Court) में दर्ज किया गया था। उस समय से लेकर अब तक इस केस में कौन-कौन सी कानूनी लड़ाइयां लड़ी गई हैं, उन सब का विवरण हम अपने आर्टिकल में आपको प्रदान करेंगे, अगर आप इस केस में हुए उतार चढ़ाव के बारे में जानना चाहतें है तो इस लेख को पूरा पढ़े।

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Gyanvapi Temple Case : 3 दशकों की कानूनी लड़ाई, जो आपको जानना चाहिए है? 

15 अक्टूबर 1991:

 ज्ञानवापी मामले के खिलाफ पहली याचिका स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर ने 1991 में वाराणसी अदालत में दायर की थी। याचिका में ज्ञानवापी परिसर में पूजा करने का अधिकार देने की मांग की गई थी। इसी साल संसद के द्वारा 1991 प्लेस आफ वरशिप एक्ट का कानून पारित किया गया था। 

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याचिका तीन प्रमुख बिंदुओं पर की गई थी:-

  • संपूर्ण ज्ञानवापी परिसर को काशी मंदिर घोषित करना।
  • क्षेत्र में मुस्लिम समुदायों की कोई भागीदारी नहीं।
  • और मस्जिद पर बुलडोजर चलाना |

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सन् 1993 

1993 में ज्ञानवापी के मुकदमे में स्टे लगा दिया गया था, कोर्ट ने दोनों पक्षों ये यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। 

13 अक्टूबर 1998 

1998 मामले पर सुनवाई शुरू हुई’ लेकिन इंतजामिया मस्जिद कमेटी हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और  कमेटी ने कोर्ट में अपना तर्क दिया कि इस मामले में सिविल कोर्ट कोई फैसला सुना नहीं सकता है। जिसके बाद हाईकोर्ट ने सिविल कोर्ट में सुनवाई पर रोक लगा दिया  था।  22 साल तक इस केस पर कोई सुनवाई नहीं हुई 

दिसंबर 2019

2019 में स्वयंभू ज्योतिर्लिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से विजय शंकर रस्तोगी द्वारा बनारसी जिला अदालत ( Banaras District Court) में याचिका दाखिल की गई थी। जिसमें कहा गया कि ज्ञानवापी परिसर का आर्कियोलॉजिकल सर्वे करवाना चाहिए, ताकि इस बात को मालूम किया जा सके कि ज्ञानवापी मस्जिद नहीं बल्कि मंदिर है ।

8 अप्रैल, 2021

वाराणसी के सिविल जज (सीनियर डिवीजन) आशुतोष तिवारी ने एएसआई को ज्ञानवापी परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया। 

अगस्त 2021

पांच महिलाओं ने वाराणसी के सिविल जज के सामने अपनी एक याचिका आधार की जिसमें उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में बने सिंगार गोरी मंदिर में रोजाना पूजा और दर्शन करने की अनुमति मांगी. 

सितम्बर 9, 2021: 

इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया ने आदेश पर रोक लगा दी। बाद में उन्होंने इस मामले को मूल मुकदमे के साथ जोड़ दिय- जिसका फैसला मार्च 2022 में सुरक्षित रखा गया था |

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अप्रैल 2022: 

अगस्त 2021 में दायर याचिका के आधार पर, वाराणसी अदालत ने एक अधिवक्ता आयुक्त नियुक्त किया और परिसर के वीडियो ग्राफिक सर्वेक्षण का आदेश दिया। इस फैसले को अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी ने भी इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, लेकिन इसे बरकरार रखा गया, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई।

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21 अप्रैल 2022

HC ने आदेश को चुनौती देने वाली AIM की याचिका खारिज कर दी थी |

6 मई 2022:

जिला मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता वाले अधिकारियों के तहत निष्पादित वीडियो ग्राफिक सर्वेक्षण के बाद, एआईएमसी के वकील द्वारा एक याचिका दायर की गई थी। इस याचिका में एडवोकेट कमिश्नर अजय मिश्रा पर पक्षपात का आरोप लगाते हुए उन्हें हटाने की मांग की गई है।

12 मई 2022: 

हालांकि, कोर्ट ने अजय मिश्रा पर लगे सभी आरोपों को खारिज कर दिया. साथ ही सर्वे की निगरानी के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता विशाल सिंह को विशेष अधिवक्ता आयुक्त नियुक्त किया गया. 

14-19 मई 2022: 

सर्वेक्षण दोबारा शुरू किया गया और दो दिनों तक चलाया गया. सभी सर्वेक्षण निष्कर्ष 17 मई तक अदालत को एक रिपोर्ट में प्रस्तुत किए गए थे।

20 मई 2022:  

बाद में, मामले की कार्यवाही सुप्रीम कोर्ट द्वारा जिला न्यायाधीश को स्थानांतरित कर दी गई। और अदालत ने इस मामले को बेहतर तरीके से संभालने के लिए 25-30 साल के अनुभव वाले एक वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी को शामिल करने का फैसला किया।

26 मई 2022: 

अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की अब तक अधूरी दलीलों के कारण मामले की स्थिरता याचिका पर सुनवाई आगे की तारीखों तक  बढ़ती रही 

24 अगस्त 2022

सुनवाई के इस दिन वाराणसी जिला जज अजय कृष्ण विश्वेशा ने 12 सितंबर तक अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. और इस बीच, उन्होंने दोनों पक्षों से अपनी दलीलें पूरी करने को कहा।

12 सितंबर 2022:

 जिला अदालत के न्यायाधीश एके विश्वेश ने अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की याचिकाएं खारिज कर दीं . इसका मतलब यह है कि अब दीवानी मुकदमों की विस्तार से सुनवाई होगी और साक्ष्यों की जांच होगी। साथ ही, ज्ञानवापी विवाद पर अगली अदालती सुनवाई 22 सितंबर, 2022 को होनी है।

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11 अक्टूबर 2022:

 वाराणसी जिला न्यायाधीश अदालत ने इस दिन ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर पाए गए कथित ‘शिवलिंग’ की कार्बन डेटिंग की मांग पर अपना आदेश देने के लिए 14 अक्टूबर की तारीख तय की।

14 अक्टूबर 2022:

 वाराणसी अदालत ने चार हिंदू महिलाओं द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद के वजुखाना या जलाशय के अंदर पाए गए ढांचे की कार्बन डेटिंग करवाई जाएगी |

21 जुलाई 2023

बनास कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर का आर्कियोलॉजिकल सर्वे करने का आदेश पारित किया है।

23 जुलाई 2023

23 जुलाई 2023 को मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और वहां पर याचिका आधार की थी कि आर्कियोलॉजिकल सर्वे पर रोक लगाई जाए  इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने दो दिनों तक आर्कोलॉजिकल सर्वे पर रोक लगा दी है । 

19 दिसंबर 2023

हाई कोर्ट में मुस्लिम पक्ष के द्वारा दाखिल पांच याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया गया है और साथ में कोर्ट ने निर्देश दिए हैं कि आर्कियोलॉजिकल सर्वे की जो रिपोर्ट पूरी हो गई है उसे जिला न्यायालय में प्रस्तुत किया जाए और अगर जरूरत पड़े तो आगे भी सर्वे का काम किया जा सकता है’ साथ में बनारस कोर्ट को निर्देश जारी किए गए हैं कि इस मामले की सुनवाई 6 महीने के अंदर  पूरी करनी होगी |

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Conclusion:

उम्मीद करता हूं कि हमारे द्वारा लिखा गया आर्टिकल आपको पसंद आएगा। आर्टिकल संबंधित अगर आपका कोई भी सवाल या प्रश्न है तो आप हमारे कमेंट सेक्शन में जाकर पूछ सकते हैं, उसका उत्तर हम आपको जरूर देंगे। तब तक के लिए धन्यवाद और मिलते हैं अगले आर्टिकल में।

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