राजा राममोहन राय जीवन परिचय 2023 | Raja Rammohun Roy Biography in Hindi (प्रारम्भिक जीवन,परिवार,शिक्षा,पुस्तकें,देहांत)

Raja Ram Mohan Roy Biography in Hindi

Raja Ram Mohan Roy Biography in Hindi: राजा राममोहन राय आधुनिक भारत के महापुरुष कह जाते हैं उन्होंने भारत के समाज में कई प्रकार के सामाजिक बदलाव की है उन्हीं की देन थी कि भारत में सती प्रथा को समाप्त किया गया इसके अलावा उन्होंने हमेशा हिंदू समाज में व्याप्त कृतियों का पुरजोर विरोध किया और उसमें बदलाव करने के लिए लगातार लगातार काम करते रहे थे ऐसे में राजा राममोहन राय के निजी जीवन के बारे में जानने की उत्सुकता लोगों के मन में तेजी के साथ आ रही होगी कि राजा राममोहन राय कौन है? Raja Ram Mohan Roy Birth Family) Raja Ram Mohan Roy Education अगर आप इन सब के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं तो हम आपसे निवेदन करेंगे कि हमारे आर्टिकल को आखिरी तक पढ़ेंगे तभी जाकर आपको पूरी जानकारी मिल पाएगी चलिए जानते हैं-

कौन थे राजा राममोहन राय | Who is Raja Ram Mohan Roy

राजा राममोहन राय को भारतीय समाज का आधुनिक महापुरुष का जाता है  उन्होंने हिंदू धर्म के जितने भी कुप्रथा थी उनका पुरजोर तरीके से विरोध किया और साथ में भारतीय हिंदू समाज में किस प्रकार सामाजिक बदलाव आए उसके लिए लगातार काम करते रहे इसका सबसे बड़ा उदाहरण था कि भारत में सती प्रथा जैसी कुप्रथा को उन्होंने समाप्त किया क्योंकि इस प्रथा के कारण ना जाने कितनी निर्दोष महिलाओं को पति के साथ जिंदा जला दिया जाता था और यह परंपरा कई सालों से भारत में हिंदू समाज के द्वारा अनुसरण किया जाता था उन्होंने इस प्रथा को समाप्त कर हिंदू समाज में एक कर सामाजिक बदलाव लाया जिसके कारण उन्हें भारतीय हिंदू समाज का नवजागरण महापुरुष भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने हिंदू समाज के सभी बुराइयों को समाप्त किया |

राजा राममोहन राय जीवन परिचय | Raja Ram Mohan Roy 2023

पूरा नामराजा राममोहन राय
जन्मतिथि22 मई 1772
जन्म स्थानबंगाल के हूगली जिले के में राधानगर गाँव
पिता का नामरामकंतो रॉय
माता का नामतैरिनी
शैक्षणिक योग्यताउन्हें कई भाषाओं का ज्ञान था
पेशाईस्ट इंडिया कम्पनी में कार्य,जमीदारी और सामाजिक क्रान्ति के प्रणेता
प्रसिद्ध थेभारत में सती प्रथा को समाप्त करने के लिए
उपलब्धिइनके प्रयासों से 1829 में सती प्रथा पर क़ानूनी रोक लग गई
पुरस्कारमुगल महाराजा  ने उन्हें राजा की उपाधि दी फ्रेंच Société Asiatique ने संस्कृत में के अनुवाद उन्हें 1824 में सम्मानित किया.
मृत्यु27 सितम्बर 1833 को ब्रिस्टल के पास स्टाप्लेटोन में

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राजा राममोहन राय जन्म परिवार (Raja Ram Mohan Roy Birth Family)

राम मोहन का जन्म 22 मई 1772 को बंगाल के हूगली जिले के में राधानगर गाँव में हुआ था. उनके पिता का नाम रामकंतो रॉय और माता का नाम तैरिनी था. राम मोहन का परिवार वैष्णव था  जो धर्म के मामले में कट्टर हिंदू और रूढ़िवादी परिवार था |  राजा राममोहन राय की शादी 9 वर्ष की उम्र में तय कर दी गई लेकिन उनकी पत्नी का बहुत जल्दी देहांत हो गया इसके बाद 10 साल की उम्र में उनकी दूसरी शादी की गई जिससे उनके दो पुत्र हुए लेकिन 1826 में उनके पत्नी का देहांत हो गया जिसके बाद फिर उन्होंने तीसरी शादी की उनकी तीसरी पत्नी ज्यादा समय जीवित नहीं रह सकी.

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राजा राममोहन राय की शिक्षा | Raja Ram Mohan Roy Education

 राजा राममोहन राय ने 15 वर्ष की उम्र तक बांग्ला भारतीय नदी और संस्कृति जैसी भाषा का अध्ययन पूरा कर लिया था उनकी प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत और बंगाली भाषा में गांव की स्कूल से शुरू की गई थी लेकिन बाद में उन्हें पटना के मदरसे में भेज दिया गया जहां उन्होंने अरबी और फारसी भाषा की थी 22 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी भाषा उन्होंने सीख लिया था इसके अलावा संस्कृत पढ़ने के लिए  काशी चले गए जहां उन्होंने वेदों और उपनिषदों का अध्ययन किया | उन्होंने अपने जीवन में बाइबिल के साथ ही कुरान और अन्य इस्लामिक ग्रन्थों का अध्ययन भी किया |

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राजा राममोहन प्रारम्भिक विद्रोही जीवन | Raja Ram Mohan Roy Life

राजा राममोहन राय पूजा और हिंदू समाज में व्याप्त अनैतिक परंपराओं के खिलाफ थे उन्होंने समाज में फैले हुए कृतियों और अंधविश्वासों को दूर करने के लिए लगातार काम करने का एक निश्चय किया था लेकिन उनके पिता एक कट्टर ब्राह्मण थे जो धर्म धर्म का पालन काफी कठोरता के साथ किया करते थे |  यही वजह है कि उनके और उनके पिता के बीच हमेशा धर्म को लेकर बहस हो चुकी थी 14 साल की उम्र में उन्होंने घर छोड़कर सन्यास लेने की घोषणा किया था लेकिन उनकी मां ने उन्हें जाने नहीं दिया लेकिन जब  उनका संबंध पिताजी साथ ज्यादा खराब हो गए उन्होंने अपना घर छोड़ कर हिमालय और तिब्बत की तरफ चले गए. इस दौरान उन्होंने कई जगहों का भ्रमण किया और उन्होंने धर्म क्या है उसके बारे में व्यापक जानकारी हासिल की इसके बाद वह घर वापस आ गए | उनके परिवार ने उनकी शादी करवाई ताकि शादी के बाद उनके विचार बदल जाए लेकिन राजा राममोहन राय अपने विचारों पर कायम थे शादी होने के बाद वह वाराणसी चले गए और वहां पर उपनिषद हिन्दू दर्शन शास्त्र का अध्ययन किया. लेकिन जब उनके पिता का देहांत हुआ तो 1803 में वो मुर्शिदाबाद लौट आए |

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राजा राममोहन की वैचारिक क्रान्ति का सफर

राजा राम मोहन राय वैचारिक क्रांति के जनक माने जाते हैं कि उन्होंने अपने विचार से भारतीय समाज में आमूलचूल परिवर्तन लाया था 1803 में उसमें शामिल विभिन्न मतों में उन्होंने अंधविश्वास पर अपनी एक राय रखी जिसके मुताबिक उन्होंने कहा कि ईश्वर एक है |  उसने ही इस सृष्टि का निर्माण किया है उन्होंने अपनी इस बात को वेदों और उपनिषदों के माध्यम से लोगों को समझाने का प्रयास किया इसके लिए उन्होंने संस्कृत भाषा में लिखी गई बातों को बंगाली और हिंदी और इंग्लिश में अनुवाद किया उनके मुताबिक इस ब्रम्हांड में एक ऐसी शक्ति है इसके बारे में कोई भी नहीं जानता है उसके माध्यम से ब्रह्मांड का संचालन होता है |  1814 में राजा  राम मोहन राय ने आत्मीय सभा की स्थापना की. इसका प्रमुख उदय समाज में सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर पुनः विचार कर उन्हें परिवर्तन लाने का था | राजा राममोहन राय ने महिलाओं के अधिकार के लिए कई प्रकार के जन आंदोलन का नेतृत्व किया जिसमें से विधवा विवाह और महिलाओं को जमीन संबंधित हक दिलाना प्रमुख है |  इसके अलावा भारत में सती प्रथा जैसी कुप्रथा को भी समाप्त करने का बीड़ा राजा राममोहन राय ने उठाया था और उन्होंने महिलाओं को इस कुप्रथा से मुक्त करवाया | . वो बाल विवाह, बहु-विवाह के भी विरोधी थे.उन्होंने शिक्षा को समाज की आवश्यकता माना और महिलाएं भी शिक्षा हासिल कर सके उसके लिए लगातार प्रयास उन्होंने किया उनका मानना था कि इंग्लिश भाषा भारतीय भाषाओं से ज्यादा समृद्ध और विकसित है इसलिए उन्होंने सरकारी स्कूलों को संस्कृत से मिलने वाले सरकारी फंड का विरोध किया और 1822 में उन्होंने इंग्लिश मीडिया स्कूल निर्माण किया |

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राजा राममोहन राय के शैक्षणिक सुधार

राजा राममोहन राय ने इंग्लिश स्कूलों की स्थापना के साथ-साथ कोलकाता में हिंदू कॉलेज की स्थापना की जो आगे चलकर भारत का एक अच्छा शिक्षा का केंद्र बन गया राजा राममोहन राय ने विज्ञान के सब्जेक्ट जैसे फिजिक्स केमिस्ट्री और वनस्पति शास्त्र जैसे सब्जेक्ट पर जोर दिया उनके मुताबिक देश के युवा को नई-नई तकनीक हासिल करनी चाहिए तभी जाकर देश के विकास में अपना योगदान अच्छी तरह से दे पाएंगे | इसके लिए उन्होंने स्कूलों में अंग्रेजी भाषा से छात्रों को पढ़ाया जाए इस बात का उन्होंने पुरजोर तरीके से समर्थन किया | 1815 में शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के लिए कोलकाता आ जाए उन्होंने ब्रिटिश सरकार को सुझाव दिया कि यदि भारतीय छात्र गणित भूगोल और लैट्रिन नहीं पढ़ाएंगे तो भारतीय छात्र पीछे रह जाएंगे सरकार ने उनके इस विचार को एक्सेप्ट किया लेकिन इस नियम को भारत में लागू नहीं किया जा सका उन्होंने मातृभाषा के विकास के क्षेत्र में भी अच्छा-खासा काम किया उसकी सबसे बड़ी देन गुड़िया व्याकरण जो बंगाली साहित्य की अनुपम कृति है | रबिन्द्र नाथ टेगोर और बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्य ने भी उनके पद चिन्हों का अनुकरण किया।

राजा राममोहन राय के सामाजिक/धार्मिक सुधार

राजा राममोहन राय के द्वारा कई प्रकार के सामाजिक और धार्मिक सुधार भारतीय समाज में किए गए थे उन सभी का विवरण हम आपको नीचे दे रहे हैं आइए जानते हैं

सती प्रथा को समाप्त करना

जैसा की आप लोगों को मालूम है कि भारत में सती प्रथा का प्रचलन था जिसके मुताबिक अगर किसी स्त्री का पति मर जाए तो उसकी स्त्री को भी अपने पति के साथ जला दिया जाता था ऐसे में राजा राममोहन राय ने इस प्रथा का पुरजोर तरीके से विरोध किया और उन्होंने सरकार से अनुरोध किया कि भारत में इसे बंद किया जाए उसके बाद 1829 को बंगाल कोड पास किया गया जिसके अनुसार बंगाल में सती प्रथा कानून अपराध घोषित कर दिया गया |

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मूर्ति पूजा का विरोध

राजा राममोहन राय ने मूर्ति पूजा का भी  खुलकर विरोध किया,और एकेश्वरवाद के पक्ष में अपने तर्क रखे. उन्होंने “ट्रिनीटेरिएस्म” का भी विरोध किया जो कि क्रिश्चयन मान्यता हैं. इसके अनुसार भगवान तीन रूपों में व्याप्त है उनके अनुसार उन्होंने कहा कि ईश्वर एक है और वही इस ब्रह्मांड का संचालन करता है उन्होंने अपनी बात को हिंदू धर्म शास्त्र के अनुसार लोगों को समझाया उन्होंने कहा कि हमें हमेशा एक ही ईश्वर पर विश्वास करना चाहिए क्योंकि उसके द्वारा हम सभी लोगों का पालन पोषण किया जाता है |

महिलाओ की वैचारिक स्वतन्त्रता

महिलाओं को वैचारिक स्वतंत्र मिल सके इसके लिए भी उन्होंने लगातार काम किया उसके मुताबिक महिलाओं को भी पुरुषों की तरह शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार प्राप्त होता कि महिलाएं शिक्षा ग्रहण करके अपने विचार लोगों के सामने प्रस्तुत कर सके |

जातिवाद का विरोध

भारतीय समाज का जातीय वर्गीकरण ब्रिटिश काल में काफी तहत महेश था उस समय लोग जाति के अनुसार इन लोगों से व्यवहार किया करते थे जिसके कारण भारतीय समाज में जातिवाद व्यापक रूप से उपस्थित था जिसका राजा राममोहन राय ने कड़ा विरोध किया|  उन्होंने कहा कि हर कोई परम पिता परमेश्वर का पुत्र या पुत्री हैं. ऐसे में मानव में कोई विभेद नहीं हैं. समाज में घृणा और शत्रुता का कोई स्थान नहीं है सबको समान हक मिलना चाहिए |

वेस्टर्न शिक्षा की वकालत

राजा राममोहन राय धार्मिक पुस्तकों के अध्ययन उन्होंने काफी व्यापक रूप से किया था |  इसके बावजूद उन्होंने भारतीय समाज में अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार और विस्तार तेजी के साथ हो इसका उन्होंने पुरजोर तरीके से समर्थन किया क्योंकि उनका मानना था कि वक्त के साथ भारत को भी अपने शिक्षा प्रणाली को बदलना होगा तभी जाकर हम आने वाले दिनों में हम समृद्ध और उन्नत भारत बना पाएंगे |  उनके कारण 1835 में भारत में अंग्रेजी शिक्षा पद्धति का निर्माण किया गया |

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भारतीय पत्रकारिता के जनक

भारत की पत्रकारिता में राजा राममोहन राय की भूमिका काफी अहम रही थी उन्होंने अपने कुशल लेखन के माध्यम से लोगों को भारतीय समाज में व्याप्त सामाजिक और धार्मिक अंधविश्वास के प्रति लोगों को जागरूक करने का काम किया इसके अलावा अंग्रेजी में भी उनका लिखा गया लेखन अंग्रेजी सरकार की नींद उड़ा दिया था कि वह हमेशा सरकार के अच्छे और बुरे सभी कामों की आलोचना किया करते थे

राजा राममोहन राय द्वारा लिखित पुस्तकें और साहित्य Raja Ram Mohan Roy books &Literature

●   इंग्लिश,हिंदी,पर्शियन और बंगाली भाषाओं में की मेग्जिन पब्लिश भी करवाए.

●  1820 में उन्होंने एथिकल टीचिंग ऑफ़ क्राइस्ट भी पब्लिश किया

●  1816 में राममोहन की इशोपनिषद,1817 में कठोपनिषद,1819 में मूंडुक उपनिषद अनुवाद राजा राममोहन राय ने किया था

●  पीस एंड हैप्पीनेस, 1821 में उन्होंने एक बंगाली अखबार सम्बाद कुमुदी में भी लिख.

●  1822 में मिरत-उल-अकबर नाम के पर्शियन Journal में भी लिखा

●  1826 मे उन्होंने गौडिया व्याकरण

●   1828 में ब्राह्मापोसना

●  1829 में ब्रहामसंगीत और 1829 में दी युनिवर्सल रिलिजन नाम की पुस्तक लिखी |

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राजा राम मोहन राय की मृत्यु (Raja Ram Mohan Roy Death)

1830 में राजा राममोहन राय अपने पेंशन की राशि के लिए मुगल सम्राट अकबर तृतीय के दूत बनकर बिटेन गए थे लेकिन 27 सितंबर 1833 ब्रिस्टल के पास स्टाप्लेटोन में मेनिंजाईटिस के कारण उनका देहांत हो गया |

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