दोहे का अपना एक अलग ही संसार है। सही मायने में दोहे का अर्थ अपनी बात को दूसरे ढ़ंग से प्रस्तुत करना होता है। जब हमें किसी बात को रोचक और कम शब्दों में बयां करना होती है तब हम दोहे का इस्तेमाल करते हैं। देखा जाए तो दोहे में बड़ी से बड़ी बात भी कम शब्दों में कह सकते हैं। दोहे में काफी गहराई छुपी होती है। यह भी एक कला होती है कि अपनी बात को सामने वाले तक कम शब्दों में कैसे कहें। यहां पर सूरदास जी के कुछ दोहे(Surdas Ke Dohe) बताए गए हैं, जो आपके लिए काफी मददगार साबित होंगे।
उधौ मन न भये दस बीस।
एक हुतौ सौ गयो स्याम संग को अराधे ईस ।।
इन्द्री सिथिल भई केसव बिनु ज्यो देहि बिनु सीस।
आसा लागि रहित तन स्वाहा जीवहि कोटि बरीस ।।
तुम तौ सखा स्याम सुंदर के सकल जोग के ईस ।
सूर हमारे नंद-नंदन बिनु और नही जगदीस ।।
निरगुन कौन देस को वासी ।
मधुकर किह समुझाई सौह दै, बूझति सांची न हांसी ।।
को है जनक, कौन है जननि, कौन नारि कौन दासी ।
कैसे बरन भेष है कैसो, किहं रस में अभिलासी ।।
पावैगो पुनि कियौ आपनो, जा रे करेगी गांसी ।
सुनत मौन हवै रह्यौ बावरों, सुर सबै मति नासी ।।
अ्रर्थ – गोपियां व्यंग करना बंद करके अपने मन की दशा का वर्णन करती हुई कहती है कि हे उद्धव हमारे मन दस बीस तो नहीं है। एक था वह भी श्याम के साथ चला गया। अब किस मन से ईश्वर की आराधना करें। उनके बिना हमारी इंद्रियां शिथिल पड़ गयी है। शरीर मानो बिना सिर के हो गया है। बस उनके दर्शन की थोड़ी सी आशा भी हमे करोड़ो वर्ष जीवित रखेगी। तुम तो कान्हा के सखा हो, योग के पूर्ण ज्ञाता हो। तुम कृष्ण के बिना भी योग के सहारे अपना उद्धार कर लोगे। हमारा तो नंद कुमार कृष्ण के सिवा कोई ईश्वर नही है।
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Surdas Ke Dohe Class 7। कक्षा 7 के लिए सूरदार के दोहे
सूरदास का जन्म रुनकता ग्राम में 1483 ई में पंडित रामदास जी के घर एक ब्राम्हण परिवार में हुआ था। वे श्री कृष्ण के भक्त थे। वे भक्ति काल के प्रमुख कवि थे। उन्हें हिंदी साहित्य का विद्वान कहा जाता है। Surdas Ke Dohe सूरदास की रचनाओं में कृष्ण भक्ति का उल्लेख मिलता है। प्रस्तुत हैं कुछ शानदार दोहे।
चरन कमल बंदौ हरि राई
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै आंधर कों सब कुछ दरसाई।
बहुरो सुनै मूक पुनि बोलै रंक चले सिर छत्र धराई
सूरदास स्वामी करूनामय बार-बार बंदौ तेहि पाई।।
मैया री मोहिं माकन भावै
मधु मेवा पकवान मिठा मोंहि नाहिं रुचि आवे
ब्रज जुवती इक पाछें ठाड़ी सुनति स्याम की बातें
मन-मन कहति कबहुं अपने घर देखौ माखन खातें
बैटें जाय मथनियां के ढिंग मैं तब रहौं छिपानी
सूरदास प्रभु अंतरजामी ग्वालि मनहि की जानी।।
Surdas Ke Dohe In Hindi । हिंदी में सूरदास के दोहे
सूरदास जी अपने दोहे के माध्यम से गुरू का वर्णन करते हुए कहते हैं कि…
गुरू बिनु ऐसी कौन करै।
माला-तिलक मनोहर बाना, लै सिर छत्र धरै।
भवसागर तै बूडत राखै, दीपक हाथ धरै।
सूर स्याम गुरू ऐसौ समरथ, छिन मैं ले उधरे।।
इसके अन्य दोहे भी यहां पर हैं उन पर भी एक नजर डाल लेते हैं।
जो पै जिय लज्जा नहीं, कहा कहौं सौ बार।
एकहु अंक न हरि भजे, रे सठ सूर गंवार।।
सदा सूंघती आपनो, जिय को जीवन प्रान।
सो तू बिसर्यो सहज ही, हरि ईश्वर भगवान।।
कह जानो कहंवा मुवो, ऐसे कुमति कुमीच।
हरि सों हेत बिसारिके, सुख चाहत है नीच।।
सुनि परमित पिय प्रेम की, चातक चितवति पारि।
घन आशा सब दुख सहै, अंत न यांचै वारि।।
दीपक पीर न जानई, पावक परत पतंग।
तनु तो तिहि ज्वाला जरयो, चित न भयो रस भंग।।
मीन वियोग न सहि सकै, नीर न पूछै बात।
देखि जु तू ताकी गतिहि, रति न घटै तन जात।।
Surdas Ke Dohe In Hindi Class 10। दसवी कक्षा के लिए सूरदास के दोहे
जो तुम सुनहु जसोदा गोरी।
नंदनंदन मेरे मंदीर में आजू करन गए चोरी।।
हों भई जाइ अचानक ठाढ़ी कह्यो भवन में कोरी।
रहे छपाई सकुचि रंचक व्है भई सहज मति भोरी।।
मोहि भयो माखन पछितावो रीती देखि कमोरी।
जब गहि बांह कुलाहल किनी तब गहि चरन निहोरी।।
लागे लें नैन जल भरि भरि तब मैं कानि न तोरी।
सूरदास प्रभु देत दिनहिं दिन ऐसियै लरिक सलोरी।।
मैया मोहि दाऊ बहुत खिजायौ।
मोसो कहत मोल को लीन्हो, तू जसमति कब जायौ
कहा करौ इही के मारे खेलन हौ नही जात।
पुनि-पुनि कहत कौन है माता, को है तेरौ तात
गोरे नंद जसोदा गोरी तू कत श्यामल गात।
चुटकी दै दै ग्वाल नचावत हंसत सबै मुसकात।
तू मोहि को मारन सीकी दाउहि कबहु न खीजै।।
मोहन मुख रिस की ये बातै, जसुमति सुनि सुनि रीझै।
सुनहु कान्हि बलभद्र चबाई, जनमत ही कौ धूत।
सूर स्याम मोहै गोधन की सौ, हो माता थो पूत।।
मैया मोहि मैं नही माखन खायौ।
भोर भयो गैयन के पाछे, मधुबन मोहि पठायो।
चार पहर बंसीबट भटक्यो, सांझ परे घर आयो।।
मैं बालक बहियन को छोटो, छीको किहि बिधि पायो।
ग्वाल बाल सब बैर पड़े है, बरबस मुख लपटायो।।
तू जननी मन की अति भोरी इनके कहें पतिआयो।
जिय तेरे कछु भेद उपजि है, जानि परायो जायो।।
यह लै अपनी लकुटी कमरिया, बहुतहिं नाच नचायों।
सूरदास तब बिहंसि जसोदा लै उर कंठ लगायो।।
निरगुन कौन देस को वासी।
मधुकर किह समुझाई सौह दै, बूझति सांची न हांसी।।
को है जनक, कौन है जननि, कौन नारि कौन दासी।।
कैसे बरन भेष है कैसो, किहं रस में अभिलासी।।
पावैगो पुनि कियौ आपनो, जा रे करेगी गांसी।
सुनत मौन हवै रह्यौ बावरों, सुर सबै मति नासी।।
ब्रज भाषा में लिखे हुए सूरदास जी के दोहों ने कई लोगों का मन मोहा है। वे अपने दोहे में ईश्वर की भक्ति चाहे वह सगुण हो या निर्गुण के बारे में बताते हैं। सूरदास जी Surdas Ke Dohe ने अध्यात्म का रास्ता अपना और दोहे के माध्यम से लोगों में भी भक्तिरस को उड़ेला है। वे अपने दोहे में हमेशा यही कहते हैं कि संसार सिर्फ मोह माया से घिरा हुआ है। अगर इंसान भगवान की भक्ति नहीं करता तो उसे अनंत जन्मों तक इसी नर्क में भोगना पड़ेगा। इसलिए मनुष्य जन्म मिला है तो उसका सही उपयोग कर इस जन्म मरण के बंधनों से मुक्त हो जाओ।
अखियां हरी दर्शन की प्यासी। अखियां हरी दर्शन की प्यासी।
देखियो चाहत कमल नैन को, निसदिन रहेत उदासी।
अखियां हरी दर्शन की प्यासी।
केसर तिलक मोतीयन की माला, ब्रिंदावन को वासी।
आये उधो फिरी गए आंगन, दारी गए गर फंसी।
अखियां हरी दर्शन की प्यासी।
काहू के मन की कोवु न जाने, लोगन के मन हासी।
सूरदार प्रभु तुम्हारे दरस बिन, लेहो करवस कासी।
अखियां हरी दर्शन की प्यासी।।
दीनन दुख हरण देव संतन हितकारी।
दीनन दुख हरण देव संतन हितकारी।
अजामील गीध व्याध इनमें कहो कौन साध।
पंची को पद पढ़ात गणिका सी तारी।।
ध्रुव के सिर छत्र देत प्रह्लाद को उबार लेत।
भगत हेतु बांध्यो सेतु लंकपुरी जारी।।
तंडुल देत रीझ जात सागपात सों अघात।
गिनत नहीं जूठे फल खाटे मीठे कारी।।
गज को जब ग्राह ग्रस्यो दुस्सासन चीर खस्यो।
सभा बीच कृष्ण कृष्ण द्रौपदी पुकारी।।
इतने में हरि आय गए बसनन आरूढ़ भये।
सूरदास द्वारे ठोढ़ो आन्धरो भिखारी।।