Varuthini Ekadashi 2023: साल 2023 कि वरूथिनी एकादशी 16 अप्रैल को मनाई जाएगी। वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की 11वीं तिथि को वरुथिनी एकादशी मनाई जाती है। इस शुभ दिन को आमतौर पर बरुथनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस एकादशी पर भक्त, भगवान विष्णु के वामन अवतार रूप की पूजा अर्चना करते हैं। साथ ही भक्त अनुष्ठान के रूप में उपवास रखते हैं और भगवान विष्णु को खुश करने की पूरी कोशिश करते हैं। यह दिन पिछले पापों से छुटकारा पाने का अवसर देता है। इसलिए, जो कोई भी भगवान विष्णु को याद करता है, वह अपने जीवन के बुरे कर्मों को दूर करना चाहता है उन्हें इस एकादशी को जरुर करना चाहिए। गौरतलब है कि कुछ लोग मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त करने के लिए भी भगवान विष्णु को अपनी प्रार्थना में रखते हैं। खैर इस लेख के जरिए हम आपको इस एकदाशी के बारें में बहुत सारी बात बताएंगे जैसे कि Varuthini Ekadashi 2023,कब है वरुथिनी एकादशी?वरुथिनी एकादशी का मुहूर्त,वरुथिनी एकादशी व्रत का महत्व,वरुथिनी एकादशी व्रत कथा,वरुथिनी एकादशी पूजा विधि। इस लेख को पूरा पढ़े और वरुथिनी एकादशी के बारे में सारी जानकारी पाएं।
Varuthini Ekadashi 2023 |वरुथिनी एकादशी
टॉपिक | Varuthini Ekadashi 2023 Date: वरुथिनी एकादशी कब? जानें मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत का महत्व |
लेख प्रकार | आर्टिकल |
साल | 2023 |
वरुथिनी एकादशी 2023 | 16 अप्रैल |
तिथि | कृष्ण पक्ष की 11वीं तिथि |
वार | रविवार |
किसके द्वारा मनाई जाती है | हिंदू |
कहां मनाई जाती है | भारत में |
वरुथिनी एकादशी का दूसरा नाम | बरुथनी एकादशी |
किसकी पूजा की जाती है | भगवान विष्णु |
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कब है वरुथिनी एकादशी? Kab Hai Varuthini Ekadashi
साल 2023 में वरुथिनी एकादशी रविवार 16 अप्रैल को पड़ रही है। उत्तर भारतीय पूर्णिमांत कैलेंडर के अनुसार वरुथिनी को बरूथिनी एकादशी के रूप में भी जाना जाता है, जो वैशाख महीने के कृष्ण पक्ष (घटते चरण) पर होती है। दूसरी ओर चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली वरुथिनी एकादशी दक्षिण भारतीय अमावसंत कैलेंडर में एकादशी है। पूर्णिमांत कैलेंडर में एक महीना पूर्णिमा के अगले दिन से शुरू होता है और पूर्णिमा के अगले दिन समाप्त होता है। अमावस्यांत कैलेंडर के अनुसार, माह अमावस्या के अगले दिन से शुरू होता है और अमावस्या के दिन समाप्त होता है। यह हिंदुओं के लिए एक पवित्र दिन है और भगवान विष्णु को समर्पित है, विशेष रूप से उनके पांचवें अवतार वामन को इस दिन पूजा जाता है। इस दिन भक्त पूजा करते है, व्रत करते हैं और दान देते हैं।
वरूथिनी एकादशी का शुभ मुहूर्त | Varuthini Ekadashi Muhurat
अप्रैल 16, 2023 को सूर्योदय | 6:09 पूर्वाह्न |
16 अप्रैल 2023 को सूर्यास्त 6:44 | अपराह्न |
एकादशी तिथि प्रारंभ | 15 अप्रैल 2023 को रात 8:45 बजे से |
एकादशी तिथि समाप्त | 16 अप्रैल 2023 को शाम 6:14 बजे |
द्वादशी समाप्ति समय | 17 अप्रैल 2023 को दोपहर 3:46 बजे |
हरि वासरा समाप्ति समय | 16 अप्रैल 2023 को रात 11 बजकर 37 मिनट |
पारण का समय | 17 अप्रैल 2023 को सुबह 6:08 बजे से 8:39 बजे तक |
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वरूथिनी एकादशी 2023 तिथि और मुहूर्त | Varuthini Ekadashi Date And Muhurat
अगर हम वरुथिनी एकादशी 2023 तिथि और मुहूर्त के बारे में बात करें तो वरुथिनी एकादशी कि तिथि रविवार यानि की 16 अप्रैल को पढ़ रही हैं। वहीं एकादशी तिथि शुरुआत 15 अप्रैल को रात 08 बजकर 45 मिनट से हो जाएगी जो कि 16 अप्रैल को शाम 06:14 बजे पर एकादशी तिथि समाप्त होगी। एकादशी पर उपवास किया जाता है और यह पूरे दिन का उपवास होता है जो तिथि समाप्त होने के बाद की तोड़ा जाता है, तो हम आपको बता दें क व्रत तोड़ने का समय 17 सुबह 05 बजकर 54 मिनट से 08 बजकर 29 मिनट तक हैं। वहीं हरि वासरा समाप्ति मुहूर्त दोपहर 03:46 बजे हैं।
वरूथिनी एकादशी व्रत का महत्व | Varuthini Ekadashi Katha
भविष्य पुराण के अनुसार भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को वरुथिनी एकादशी का महत्व बताया है। उनका कहना है कि यह एकादशी दुर्भाग्यशाली को सौभाग्य में बदल सकती है और एक आत्मा को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त कर सकती है। इस एकादशी का पालन करने से इक्ष्वाकु राजा धुन्धुमार को शिव के श्राप से मुक्त होने और राजा मन्दाता को ज्ञान प्राप्त करने में मदद मिली है। साथ ही, विभिन्न हिंदू किंवदंतियों के अनुसार, वरुथिनी एकादशी का उपवास करना एक सौ कन्यादान या सूर्य ग्रहण के दिन कुरुक्षेत्र में सोना दान करने के बराबर है।
इस प्रकार, वरुथिनी एकादशी हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण व्रत है, जो अनगिनत लाभ प्रदान करता है। ऐसा माना जाता है कि जो वरुथिनी एकादशी व्रत का पालन करता है वह सभी बुराइयों से सुरक्षित रहता है और भगवान वामन से आशीर्वाद प्राप्त करता है। साथ ही यह बीमारियों और कष्टों, प्रसिद्धि, सुख, समृद्धि, भौतिक सुख आदि के लिए उपचार प्रदान करने वाला माना जाता है।वरुथिनी एकादशी की परम शक्ति मोक्ष प्रदान कर रही है, जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति देती है। हिन्दू ज्योतिष के अनुसार जो इस दिन व्रत रखता है वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाता है।
वरुथिनी एकादशी भगवान विष्णु की पूजा करने का एक सही समय है। इसलिए, लोग पूजा करके और उपवास रखकर भगवान को खुश करने की कोशिश करते हैं।उपवास रखने वाले भक्तों को मानसिक शांति और मन में सकारात्मकता प्राप्त हो सकती है। साथ ही, वे भगवान विष्णु को याद करके अपने पापों को धो सकते हैं।जो लोग शारीरिक रूप से अक्षम हैं वे भी आजीवन दर्द से कुछ राहत पाने के लिए उपवास के अनुष्ठानों का पालन करते हैं।जो लोग मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से पीड़ित हैं वे ठीक हो सकते हैं।इस शुभ दिन पर, युवतियां भी व्रत रखने में अपने बड़ों के साथ शामिल होती हैं। ऐसा करने से लड़कियों को एक प्यार करने वाला और केयरिंग लाइफ पार्टनर मिल सकता है।यह एक दिन का उपवास एक हजार साल की तपस्या के बराबर है। इसलिए, भक्तों ने भगवान को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखने के लिए वरुथिनी एकादशी पर विचार किया।वे विष्णु सहस्रनाम का भी जाप करते हैं और भक्ति गीत सुनते हैं, जो वैदिक संस्कारों का हिस्सा है।गुप्त शत्रुओं पर आपकी विजय हो सकती है।आप खराब स्वास्थ्य पर काबू पा सकते हैं,आप मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं,भगवान विष्णु आपको बुरी शक्तियों से बचा सकते हैं,आप एक सकारात्मक मानसिकता विकसित कर सकते हैं और आराम महसूस कर सकते हैं,व्रत के दौरान भगवान विष्णु का स्मरण करने से आपकी मनोकामना पूरी हो सकती है।
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वरुथिनी एकादशी व्रत कथा | Varuthini Ekadashi Katha
एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से वरुथिनी एकादशी व्रत के महत्व को बताने का निवेदन किया, तब श्रीकृष्ण ने कहा कि वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी ही वरुथिनी एकादशी है। इस व्रत को करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। उन्होंने वरुथिनी एकादशी व्रत के महत्व को इस कथा के माध्यम से बताया-
एक समय में नर्मदा नदी के तट पर राजा मांधाता राज्य करते थे, वह धर्मात्मा एवं दानी व्यक्ति थे। एक बार वे जंगल के पास तपस्या कर रहे थे, तभी वहां एक भालू आया और उनके पैर को चबाने लगा। फिर वह राजा को घसीट कर जंगल में ले गया। इस दौरान राजा की तपस्या भंग हो गई और वे घायल हो गए।
उन्होंने भगवान विष्णु को मन ही मन ध्यान करके अपने प्राणों की रक्षा की प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु प्रकट हुए और अपने चक्र से उस भालू को मारकर राजा मांधाता के प्राणों की रक्षा की। भालू के हमले में राजा मंधाता अपंग हो गए थे, इस वजह से वे दुखी और कष्ट में थे। उन्होंने भगवान विष्णु से इस शारीरिक और मानसिक पीड़ा को दूर करने का उपाय पूछा।
तब श्रीहरि ने कहा कि यह तुम्हारे पूर्वजन्म के अपराध का फल है। तुमको मथुरा में वैशाख माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत रखना होगा और मेरे वराह अवतार की पूजा करनी होगी। उसके पुण्य प्रभाव से ही कष्ट और दुख दूर होंगे।भगवान विष्णु के बताए अनुसार राजा मांधाता मथुरा पहुंच गए और विधिपूर्वक वरुथिनी एकादशी का व्रत रखा और वराह अवतार की पूजा की। इस व्रत के पुण्य फल से राजा मांधाता के कष्ट और दुख दूर हो गए, वे फिर से शारीरिक तौर पर अच्छे हो गए। उनको भगवान विष्णु की कृपा से स्वर्ग की प्राप्ति भी हुई।
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वरूथिनी एकादशी पूजा विधि |Varuthini Ekadashi Pooja Vidhi
वरूथिनी एकादशी पर लोग भगवान विष्णु और उनके 5वें रूप भगवान वामन की बड़ी श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना करते हैं। हम आपको इस पॉइन्ट के जरिए नीचे लोगों द्वारा किए जाने वाले वरुथिनी एकादशी पूजा विधि के बारे में बताने जा रहे है
- उपवास रखने वाले भक्त सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद विष्णु पूजा की व्यवस्था करते हैं।
- वे भगवान की मूर्ति को धूप, चंदन, अगरबत्ती, फूल चढ़ाते हैं।
- लोग इस दिन एक दिन का उपवास रखते हैं और वहीं कुछ भक्त तो पानी तक नहीं पीते हैं।
- व्रत तोड़ने या पारण अगले दिन (द्वादशी) को स्नान करने और भगवान विष्णु की पूजा करने के बाद किया जाना चाहिए। यह पारण के समय में किया जाना चाहिए, जो प्रत्येक द्वादशी के साथ बदलता रहता है।
- द्वादशी की पहली तिमाही, हरि वासर काल के दौरान पारण या व्रत तोड़ना नहीं चाहिए।
- वरुथिनी एकादशी के दौरान लोग मांसाहारी भोजन करने से दूरी बना लेते हैं।
- वे विष्णु मंत्र का पाठ करते हैं और पवित्र ग्रंथों को पढ़ते हैं।
- इस दिन दान का बहुत महत्व है, तो भक्त ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन या वस्त्र दान करके इस व्रत का पालन करते हैं।
- पारण के लिए सबसे शुभ समय प्रातःकाल है। यदि साधक प्रातःकाल में न कर सके तो उसे मध्याहन के बाद करना चाहिए।