Lohari Mata Ki Katha:- लोहड़ी पर्व उत्तर भारत के प्रसिद्ध पर्व में से एक है और इसे राजस्थान हरियाणा पंजाब राज्य में अधिक मनाया जाता है। वर्ष 2024 में लोहड़ी पर्व है 13 जनवरी 2024 शुक्रवार के दिन मनाया जा रहा है। लोहड़ी पर्व (Lohri Parv) से नव वर्ष के त्योहारों की शुरुआत हो जाती है। इसी के साथ पौष माह का भी समापन हो जाता है एवं माघ माह की शुरुआत हो जाती है। संपूर्ण देश में लोहड़ी पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पर इसका उत्साह अधिकतर पंजाब (Punjab) राज्य में देखने को मिलता है। इस दिन पंजाब निवासी आपस में इकट्ठे किए गए सूखे उपले को होली की तरह जलाए जाते हैं। अब सवाल यह उठता है की लोहड़ी का पर्व क्यों मनाया जाता है? तथा लोहड़ी माता की क्या महिमा है? लोहड़ी माता की कथा इत्यादि को इस लेख में विस्तारपूर्वक लिखा जा रहा है।
लोहड़ी पर्व क्यों मनाया जाता है? Lohri Parv Kyu Manaya Jata Hai
दरसल लोहड़ी पर्व मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। जिसे हिंदू एवं सिख धर्म के लोगों द्वारा सुनी जाती है और इसका अनुपालन किया जाता है। इस पर्व को भगवान शिव और माता पार्वती की अनुकंपा प्राप्ति हेतु मनाया जाता है। इस दिन देश-विदेश में रह रहे सभी भारतीय लोहड़ी की शुभकामनाएं, देकर इस त्यौहार को उत्साह पूर्वक मनाते हैं।
लोहड़ी पर्व कैसे मनाया जाता है?
- लोहड़ी पर्व की शुभ रात्रि को सभी घरों से इकट्ठे किए गए गोबर के सूखे उपलों को होली की तरह जलाया जाता है। इस दौरान महिलाओं, बच्चों द्वारा लोक गीत का गायन किया जाता है।
- खास तौर पर पंजाबी इस त्यौहार को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। जलाई गई आग के चारों ओर चक्कर लगाकर भांगड़ा नृत्य किया जाता है।
- लोहड़ी की आग को बड़ी पवित्र मानी जाती है और इस आग को माता सती (माता पार्वती) के आशीर्वाद स्वरुप माना जाता है?
- लोहड़ी पर्व पर एक भौगोलिक घटना भी घटित होती है। इस दिन शरद रात्रि की सबसे लंबी रात्रि होती है। सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की तरफ रुख करते हैं।
- लोहड़ी पर्व के अगले ही दिन सूर्य मकर रेखा को पार करते हुए उत्तरायण दिशा की तरफ रुख करते हैं इस दिन मकर सक्रांति का पर्व मनाया जाता है।
- मिठाइयों के तौर पर इस दिन तिल से बनी हुई मिठाइयां, मूंगफली रेवड़ी इत्यादि को भेंट स्वरूप दिया जाता है।
लोहड़ी माता की महिमा | Lohri Mata ki Mahima
लोहड़ी माता और कोई नहीं स्वयं सती माता पार्वती है। इससे जुड़ी पौराणिक कथाओं के आधार पर लोहड़ी पर्व को आज भी सिख समुदाय और हिंदू समुदाय द्वारा हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। जब माता सती को प्रजापति दक्ष द्वारा आहत किया जाता है। तब उन्होंने अपने आप को आग के हवाले कर दिया था। जिससे माता पार्वती सती के रूप में पूजी जाने लगी। जो भी माता सती की लोहड़ी माता के रूप में पूजा करते हैं। उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इसी के साथ लोहड़ी माता के आशीर्वाद से किसानों के चेहरे पर खुशी देखने को मिलती है।
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लोहड़ी पर्व पंजाब | lohri festival in punjab
लोहड़ी गीतों के साथ लोहड़ी की रस्में निभाई जाती हैं। गायन और नृत्य उत्सव का एक आंतरिक हिस्सा है। लोग चमकीले कपड़े पहनते हैं और ढोल की थाप पर भांगड़ा और गिद्दा नृत्य करने आते हैं। पंजाबी गाने गाए जाते हैं और सभी लोग आनंदित होते हैं।
कब है लोहड़ी | lohri kab hai ?
इसे सर्दियों के समापन का एक प्रतीकात्मक उत्सव माना जाता है, जो शीतकालीन संक्रांति के पारित होने का संकेत देता है और उत्तरी गोलार्ध में सूर्य की यात्रा के दौरान लंबे दिनों के आगमन की शुरुआत करता है। चंद्र-सौर पंजाबी कैलेंडर के सौर पहलू के अनुसार, आमतौर पर लोहड़ी माघी से पहले की रात को मनाई जाती है, लोहड़ी आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर में 13 जनवरी को पड़ती है। 2024 में लोहड़ी 13 जनवरी 2024 (शनिवार) को मनाई जाएगी।
लोहड़ी पर्व क्यों मनाया जाता है?
Lohri Kyu Manaya Jata Hai: लोहड़ी सर्दियों के सबसे ठंडे दिनों के अंतिम चरण को दर्शाने के लिए मनाई जाती है। यह त्योहार नवविवाहित जोड़ों और बच्चे के जन्म को बड़े धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। पंजाब के विभिन्न हिस्सों में, युवा और किशोर बच्चों के समूह पड़ोसियों के पास जाते हैं और लोहड़ी के अलाव के लिए लकड़ी के लट्ठे, अनाज और गुड़ इकट्ठा करते हैं।
लोहड़ी क्यों मनाई जाती है | Why is Lohri Celebrated
कटाई का समय विशेषकर कृषक समुदाय के लिए उत्साह और उत्सव का मौसम होता है। किसान सूर्य (सूर्य देवता) को धन्यवाद देने के लिए एकत्रित होते हैं, गर्मी और गर्माहट के आशीर्वाद के लिए जिससे अद्भुत फसल प्राप्त हुई – जो उनके लंबे महीनों की कड़ी मेहनत का इनाम है।
हम सभी पूरे वर्ष किसानों की कड़ी मेहनत के लिए उनके ऋणी हैं, जिसके बिना हम न तो खा सकते हैं और न ही रह सकते हैं। यह किसानों के प्रति सम्मान और मान्यता का प्रतीक है, साथ ही फसल के भरपूर और समृद्ध वर्ष के उत्सव के रूप में, लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है।
लोहड़ी पर्व कैसे मनाया जाता है?
Lohri Parv Kaise Manaya Jata Hai: लोहड़ी, एक जीवंत त्योहार है जो लोगों के बीच एकजुटता, कृतज्ञता और एकता की भावना को बढ़ावा देता है, जिसे उत्सव की भावना और इस अवसर के सांस्कृतिक महत्व को जोड़ते हुए कई अनुष्ठानों के साथ मनाया जाता है।
लोहड़ी की शुरुआत अलाव जलाने से होती है, जो सर्दियों के अंत और गर्म दिनों के आगमन का प्रतीक है, जहां लोग प्रार्थना करते हुए आग में मूंगफली, गुड़, तिल और पॉपकॉर्न जैसी चीजें चढ़ाते हैं। ये प्रसाद, जिसे अक्सर प्रसाद के रूप में जाना जाता है, अच्छे भाग्य के लिए उपस्थित लोगों के बीच वितरित किया जाता है।
त्योहार के जश्न के दौरान, लोग संगीत और नृत्य में संलग्न होते हैं, जैसे कि पारंपरिक पंजाबी नृत्य भांगड़ा और गिद्दा, उत्सव की पोशाक पहनकर लोक संगीत गाते हैं और सरसों दा साग, मक्की की रोटी, गजक और रेवड़ जैसे पारंपरिक व्यंजनों का आनंद लेते हैं।
इसलिए, लोहड़ी परिवार और समुदाय के सदस्यों के साथ सामाजिक जुड़ाव का अवसर प्रदान करती है, जो एकता और उत्सव की भावना को बढ़ावा देती है, जिससे यह भारत में सबसे पसंदीदा त्योहारों में से एक बन जाता है।
लोहड़ी माता की महिमा | Lohri Mata ki Mahima
एक कहानी के अनुसार, यह माना जाता है कि यह लोहड़ी माता सती की याद में मनाई जाती है, जिन्होंने अपने पिता प्रजापति दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में अपनी आहुति दी थी। ऐसा माना जाता है कि दक्ष भगवान शिव से नफरत करते थे, जिन्होंने उनकी बेटी से विवाह किया था और उन्हें इस पूजा में आमंत्रित नहीं किया था।
लोहड़ी माता की कथा | Lohri Mata ki Katha
दरसल यह एक पौराणिक घटना पर आधारित है और इसी पौराणिक घटना के आधार पर माता लोहड़ी की उत्पत्ति मानी जाती है।
एक बार प्रजापति राजा दक्ष अपने साम्राज्य की वृद्धि एवं विकास के लिए यज्ञ का अनुष्ठान करवाते हैं। इसमें त्रिलोकी देवी देवताओं को आमंत्रित किया जाता है। इस अनुष्ठान में सृष्टि के रचयिता स्वयं ब्रह्मा जी, पालनहार स्वयं भगवान विष्णु मौजूद थे। त्रिदेव में केवल भगवान शिव इस अनुष्ठान में उपस्थित नहीं थे। इसका कारण यह था कि प्रजापति दक्ष द्वारा भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया था।
इधर माता पार्वती द्वारा अपने पिता प्रजापति दक्ष के यहां जाने की भगवान शिव से जिद्द किया जाना भी इस घटना को इंगित करता था। माता पार्वती ने भगवान शिव से इस यज्ञ में जाने की आज्ञा मांगी और बिना ही निमंत्रण के माता पार्वती इस अनुष्ठान में चली जाती है। हालांकि, भगवान शिव ने उन्हें वहां जाने से रोकने का प्रयास किया था। परन्तु माता पार्वती प्रजापति दक्ष के अनुष्ठान में चली जाती है।
Lohari Mata Ki Katha
जब माता पार्वती को अनुष्ठान में उपस्थित सभी देव गणों एवं विशिष्ट ऋषि-मुनियों को उपस्थित देखती है। तो उन्हें अपने पति भगवान शिव का अभाव महसूस होने लगता है। उन्हें लगता है कि यदि भगवान शिव भी इस अनुष्ठान में उपस्थित होते तो कुछ और बात थी। परंतु प्रजापति दक्ष द्वारा भगवान शिव को अपमानित करने हेतु उनके लिए कोई आसन भी उस अनुष्ठान में तैयार नहीं किया गया था। तब माता पार्वती ने इसका कारण जानने की कोशिश की, तो प्रजापति दक्ष से कटु वचन सुनकर माता पार्वती को अपने पति का अपमान महसूस होने लगा और वह क्रोधित होने लगी।
माता पार्वती के साथ आए गणों ने भगवान शिव को जाकर इस घटना से अवगत करवाया। तब भगवान शिव को आभास हो चुका था कि कुछ गलत होने वाला है। माता पार्वती अपने पति भगवान शिव का अपमान किसी भी स्थिति में सहन नहीं कर सकती थी। उन्होंने अनुष्ठान की देव अग्नि में अपने आप को झोंक दिया। इससे आहत भगवान शिव ने प्रजापति दक्ष को कठोर दंड दिया।
इस पौराणिक घटना के कारण माता पार्वती सती माता के रूप में पूजे जाने लगी। तब से लेकर आज तक सती माता को लोहड़ी माता के रूप में पूजा जाता है। तथा लोहड़ी पर्व मनाया जाता।
FAQ’s: Lohri Parv 2024
Q. लोहड़ी के दौरान किस देवता की पूजा की जाती है?
लोहड़ी भगवान सूर्य को समर्पित है और इसे रबी फसलों की कटाई के साथ मनाया जाता है।
Q. भारत में मनाये जाने वाले तीन कृषि त्यौहार कौन से हैं?
भारत में मनाए जाने वाले तीन कृषि त्योहारों में असम में बिहू, पंजाब में लोहड़ी और बैसाखी और दक्षिण भारत में पोंगल शामिल हैं।
Q. क्या लोहड़ी को भारत में राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मान्यता प्राप्त है?
नहीं, लोहड़ी को भारत में राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मान्यता नहीं है। यह मुख्य रूप से पंजाब क्षेत्र और उत्तर भारत के कुछ अन्य हिस्सों में मनाया जाता है।
Q. लोहड़ी के बारे में दो पंक्तियाँ क्या हैं?
लोहड़ी शीतकालीन संक्रांति के बाद लंबे दिनों के आगमन का उत्सव है। लोककथाओं के अनुसार, प्राचीन काल में लोहड़ी पारंपरिक महीने के अंत में मनाई जाती थी जब शीतकालीन संक्रांति होती है। यह इस बात का जश्न मनाता है कि जैसे-जैसे सूर्य उत्तर की ओर बढ़ता है, दिन लंबे होते जाते हैं।
Q. लोहड़ी पर क्या है शुभ संदेश?
- इसे पहले लोहड़ी की शाम हो जाए, मेरा एसएमएस औरों की तरह आम हो जाए, आपको लोहड़ी की बहुत बहुत शुभकामनाएं। लोहड़ी की शुभकामनाएँ!
- मैं प्रार्थना करता हूं कि लोहड़ी की आग आपके दुखों को जलाकर राख कर दे। …
- लोहड़ी की पवित्र अग्नि आपके आस-पास की सभी नकारात्मकताओं को समाप्त कर आपके जीवन में पवित्रता और सकारात्मकता लाए…